राजनीति में अक्सर अपने विरोधियों का सियासी करियर खत्म करने के लिए कानून का दुरुपयोग किया जाता है। ऐसा आजादी से पहले अंग्रेज करते थे और आजादी के बाद काले अंग्रेज, यानी जिन अयोग्य लोगों के हाथ में सत्ता रही, वो करने लगे। 75 साल पहले स्वाधीनता मिलने के बाद से ही राजनेता अपने सियासी दुश्मनों को जेल में डालने और उनका राजनीतिक भविष्य अंधकारमय करने के लिए प्रयास करते रहे हैं। जिनके हाथ में सत्ता रही है, उनमें से कई लोग सत्ता के नशे में ऐसा करते हैं। आजादी के बाद देखें तो 1975 में आपातकाल लगाकर जिस तरह से विरोधी दलों के नेताओं को जेल में ठूंसा गया और उनके खिलाफ हजारों मुकदमे दर्ज किये गये, इतिहास के काले अध्याय के तौर पर जाना हाता है। ठीक ऐसे ही 21 साल पहले गोधरा कांड के बाद जिस तरह से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट साथी रहे अमित शाह पर केंद्र की कांग्रस सरकार द्वारा एसआईटी से लेकर सीबीआई का बेजा इस्तेमाल किया गया, उसका भंडाफोड़ खुद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में किया। 9 साल की एक लंबी लड़ाई नरेंद्र मोदी ने लड़ी और अंतत: 2014 में वह देश के हीरो बनकर उभरे। मोदी आज 8 साल से प्रधानमंत्री हैं, और उनके विरोधी, जो कभी उनको जेल में ठूंस देना चाहते थे, वो जमानत पर चल रहे हैं। हालांकि, मोदी के करीबी अमित शाह को जेल भी भेजा गया और राज्यबदर भी किया गया। आज अमित शाह देश के गृहमंत्री हैं और संविधान के अनुसार कानून के सबसे बड़े संरक्षक हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा के नेताओं के खिलाफ ही ऐसा किया गया है, वरन कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ भी हजारों मामले इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हैं। राजस्थान के ताजा उदाहरणों के साथ बात करें तो तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के खिलाफ 11 जुलाई 2020 को कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार से बगावत करने के बाद राजद्रोह तक का केस दर्ज कर दिया गया। बाद में जब सुलह हुई तो केस वापस ले लिए गये। हालांकि, अशोक गहलोत की तीन सरकारों में ऐसे खूब मामले हैं, जिनमें दूसरों दलों के ही नहीं, अपितु अपनी ही पार्टी के नेताओं और यहां तक कि मौजूदा मंत्रियों तक पर भी केस दर्ज करने का इतिहास रहा है। ऐसे में सचिन पायलट कोई पहले व्यक्ति् नहीं थे, जिनपर राजद्रोह मुकदमा दर्ज किया गया, लेकिन यह तो इतिहास ही बन गया कि अपने ही दल के प्रदेशाध्यक्ष और अपने ही डिप्टी के खिलाफ राजद्रोह जैसा मामला दर्ज करवाया गया, जिसमें केवल सियासी बयानबाजी तक सीमित रहा जा सकता था। इसी संदर्भ में देखें तो इन दिनों यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और डूंगरगढ़ से कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा इसलिए इस्तीफे पर अड़े हुए हैं कि उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया, लेकिन यहां पर मामला सियासी मुकदमे का नहीं है, घोघरा के खिलाफ राजकार्य में बाधा का मामला दर्ज किया गया, जिससे बचने के लिए उन्होंने इस्तीफे का खेल खेला है। इसी सिलसिले में दो दिन पहले भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोडीलाल मीणा और आरएलपी के लोकसभा सांसद हनुमान बेनीवाल के खिलाफ बांदीकुई में रेलवे लाइन पर पथराव के मामले में चालान पेश किया गया है। मजेदार बात यह है कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ चालान पेश करने का यह दुर्लभ मामला है। पिछले दिनों किरोडीलाल मीणा के द्वारा राज्य सरकार के खिलाफ कई बार धरना, प्रदर्शन और जनता की आवाज को बुलंद करने का काम किया गया है। इसी तरह से हनुमान बेनीवाल ने नागौर में नमक कारोबारी जयपाल पूनियां की हत्या के बाद जयपुर कूच कर राज्य सरकार को घेरने का काम किया था, क्योंकि इस हत्या में उपमुख्य सचेतक और कांग्रेस विधायक महेंद्र चौधरी के भाई का नाम आया था, जिनको बाद में पुलिस ने दबाव में गिरफ्तार कर लिया। अब यदि इन दोनों के मामलों को जोड़ें तो पिछले दिनों ही बयानबाजी करते हुए राज्य सरकार के पंचायती राजमंत्री रमेश मीणा ने कहा था कि किरोडीलाल मीणा को कुछ दिनों में पुलिस गिरफ्तार कर लेगी, इससे पहले उनको सरेंडर कर देना चाहिए। ऐसे ही हनुमान बेनीवाल अपने बयानों को लेकर कांग्रेस—भाजपा को खटकते रहते हैं। बेनीवाल के पिछले कुछ दिनों के बयानों को देखेंगे तो वह हमेशा की तरह सीधे गहलोत—वसुंधरा के गठजोड़ का हवाला देते हुए दोनों नेताओं की राजनीतिक तुकबंदी पर हमले करते रहे हैं। लोगों का मानना है कि किरोडीलाल और बेनीवाल के खिलाफ पुलिस के द्वारा चालान पेश किया जान उनके बयानों और आंदोलनों से परेशान सरकार की बदनीयत है। अब सवाल यह उठता है कि क्या विरोधी सांसदों और विधायकों को इस प्रकार कानून में फंसाकर कोई सरकार अपने गुनाहों से बच सकती है? आज की तारीख में देखें तो अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार के मंत्री भी कई मामलों में आरोपी हैं, लेकिन उनके खिलाफ चालान पेश नहीं किया जा रहा है। वर्तमान में राज्य के 36 विधायकों के खिलाफ आरोप प्रमाणित मानकर पुलिस मुख्यालय कोर्ट में चालान पेश करने के लिए फाइलें भेज चुका है, किंतु जिलों की पुलिस इन फाइलों को दबाकर बैठी हैं। राज्य में सबसे अधिक मुकदमों में अशोक गहलोत की कैबिनेट के पावरफुल मंत्रियों में से एक खेल मंत्री अशोक चांदना आरोपी हैं। चांदना के खिलाफ 10 मुकदमे पैंडिंग चल रहे हैं। बड़े मामलों में साल 2015 का ज्योतिनगर थाने का मामला है, जिसकी क्राइम ब्रांच ने मई 2016 और जुलाई 2018 में डीसीपी साउथ को फाइल भेजी हुई है, लेकिन चालान पेश नहीं हुए हैं। ऐसे ही 2017 में अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर के उदय मंदिर थाने में दर्ज मामले में भी पुलिस ने चालान पेश नहीं किया है। राजस्थान के वर्तमान जनप्रतिनिधियों में अशोक चांदना सबसे अधिक मामलों में आरोपी हैं। किंतु सरकार का हिस्सा होने के कारण उनपर कोई आंच नहीं आ रही है। ऐसा नहीं है कि सत्तापक्ष के नेता ही आरोपी हैं, विपक्ष के नेताओं में 7 बार के विधायक, पूर्व मंत्री और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ पर भी 2020 में चूरू के रतननगर व राजगढ़ में राजनीतिक मुकदमे दर्ज हुए थे। दोनों ही मामलों में क्राइम ब्रांच ने आरोप प्रमाणित माने और 15 फरवरी 2021 को फाइल चूरू पुलिस को चालान पेश करने को भेज दी थी, मगर आज तक मामला अधर में लटका हुआ है। राजनीति में अधिक सक्रिय रहना भी घातक साबित होता है। पिछले तीन साल से विपक्षी नेताओं में सबसे अधिक सक्रिय किरोडीलाल मीणा रहे हैं, तो पुलिस मुख्यालय ने सबसे अधिक आरोप प्रमाणित भी उन्हीं के खिलाफ माने हैं। साल 2008 में मानपुर, 2009 में मालाखेड़ा, 2010 में जीआरपी अजमेर, 2012 में सपोटरा, 2019 में थानागाजी, 2020 में दौसा कोतवाली व मानपुर के दो मामले और एक मुकदमा चंदवाजी में दर्ज हुआ। सभी में पुलिस ने आरोप प्रमाणित माने हैं, लेकिन चालान पेश नहीं किए गये हैं। इसी तरह से वर्तमान चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा के खिलाफ जयपुर के गांधी नगर में 2006 के दौरान मामले में 15 साल बाद 3 नवंबर 2021 को मुकदमा दर्ज किया गया। ऐसे ही दूसरे मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा के खिलाफ 2019 में सांगानेर के एक मामले में आरोप प्रमाणित नहीं मानते हुए 27 अक्टूबर 2021 को एफआर लगा दी गई। इनके अलावा पूर्व मंत्री हेमसिंह भड़ाना, कांतिलाल मीणा, संजय शर्मा, सांसद नरेंद्र कुमार, विधायक रहते हुए हनुमान बेनीवाल, रामलाल गुर्जर, राजेंद्र प्रसाद, गोपीचंद मीणा, सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया, मंत्री जाहिदा खान, रामप्रसाद डिंडोर, जोगेश्वर गर्ग, शोभारानी कुशवाह के विरुद्ध भी आरोप प्रमाणित मानते हुए फाइलें संबंधित जिलों में भेजी जा चुकी हैं, लेकिन आजतक चालान पेश नहीं किये गये हैं। सवाल यह उठता है कि क्या ये सभी लोग दोषी हैं? यदि दोषी हैं तो चालान पेश क्यों नहीं किया जा रहा है? और यदि इनके खिलाफ केवल राजनीतिक मुकदमें ही दर्ज हैं तो एफआर क्यों नहीं लगाई जा रही है? इसका जवाब यह है कि राजनीति में अपने विरोधियों के खिलाफ हथियार बचाकर रखे जाते हैं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके। सांसद किरोडीलाल मीणा और हनुमान बेनीवाल के खिलाफ पेश चालान यही कहते हैं कि चुनाव नजदीक आने से पहले उनको पुलिस मुकदमों से ड़राकर चुप कराया जाना बेहद जरुरी हो गया है, अन्यथा विफल सरकार की पोल खोलकर ये जनप्रतिनिधि जनता को सच बताने में कामयाब हो जाएंगे।
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