भारत—अमेरिका मिलकर चीन की घेरेबंदी में लगे हैं

रामगोपाल जाट
एक ओर जहां पूरी दुनिया की नजर जापान के टोक्यो में आयोजित हो रहे क्वाड शिखर सम्मेलन में भारत, अमेरिका, जापान और ओस्ट्रेलिया द्वारा शुरू होने जा रहे इंडो पैसेफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क कार्यक्रम पर है, तो दूसरी तरफ वैश्विक रणनीतिकार यह समझने में लगे हैं​ कि भारत कैसे इस दौरान अमेरिका के साथ मिलकर चीन की घेरेबंदी कर रहा है? यह बात सही है कि इस वक्त भी भारत बड़े पैमाने पर चीन से सामान आयात करता है, जो चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है, किंतु बीते कुछ बरसों से भारत ने चीन के साथ आयात को धीरे—धीरे कम करने के लिए लंबे समय की योजनाओं पर जोर दिया है। भारत की मेक इन इंडिया व आत्मनिर्भर भारत योजनाओं ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है।
आज दुनिया का सबसे अधिक एफडीआई भारत को मिल रही है। बीते तीन साल से भारत वर्ष 2019 में 65, 2020 में 60 और 2021 में 83 बिलियन डॉलर की एफडीआई प्राप्त करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है। इसके कारण चीन से होने वाले आयात के बढ़ते प्रतिशत को कम किया गया है। हालांकि, अभी भी भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा है, लेकिन इसको कम करने के लिए भारत सरकार बड़े स्तर पर काम कर रही है। एक समय ऐसा था जब भारत सुई भी नहीं बनाता था, लेकिन बीते कुछ सालों में भारत ने जहां एक ओर रक्षा बजट में वृद्धि की है, तो आत्मनिर्भर भारत के तहत अपने ही देश में शस्त्र बनाने के बड़े कारखाने स्थापित कर रक्षा उपकरण आयात करने में 33 फीसदी तक की कमी कर दी है। इस बीच क्वाड शिखर सम्मेलन से बिलकुल पहले भारत—चीन की पैंगोंग झील पर ड्रेगन द्वारा दूसरे पुल के निर्माण की खबरों के बाद दोनों देशों के रिश्तों पर फिर दुनिया की नजर गई है। क्या अचानक से भारत का ध्यान इस पुल निर्माण पर गया है? यदि पहले से ध्यान था, तो सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों भारत सबकुछ जानते हुए चुप था? और अब अचानक से इसको स्वीकार कर चीन को चेतावनी भी दे रहा है​, कि ये गतिविधियां दोनों देशों के बीच हुई संधि का उल्लंघन है।
इसको विस्तार से समझने के लिए इस बात को समझना जरुरी है कि आखिर क्यों भारत व चीन के बीच जारी शीतयुद्ध पर अमेरिका ने चिंता जाहिर की है? अमेरिका ने कहा कि इस तरह से एशिया की दो शक्तियों के बीच बढ़ता तनाव क्षेत्र को किसी युद्ध में धकेल सकता है। अमेरिकी संसद में एक रिपार्ट के हवाले से बताया गया है​ कि भारत आने वाले समय में चीन के साथ किसी छोटे युद्ध में फंस सकता है। अमेरिका की रक्षा खुफिया एजेंसी के निदेशक लेंफ्टिनेंट जनरल स्कॉट बेरियर ने अमेरिकी सांसद की सशस्त्र सेवा समिति के सदस्यों को यह जानकारी दी है। संसद में इसकी जानकारी देते हुए कहा है कि भारत द्वारा रूस से आयातित एस 400 एयर मिसाइल सिस्टम की तैनाती भारत की चीन—पाक सीमा पर जून में की जाएगी, जिसके बाद दोनों देशों की सीमाओं पर अधिक निगरानी रखी जा सकेगी। साथ ही यह भी बताया गया है कि भारत व चीन द्वारा अपनी—अपनी सीमाओं पर निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर किया जा रहा है, जो आने वाले समय में एक सैनिक झड़प से बढ़कर किसी छोटे युद्ध के तौर पर सामने आ सकता है।
क्वाड शिखर सम्मेलन में इस बार दो बड़े एजेंडे रहने वाले हैं। पहला इंडो पैसेफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क और दूसरा रूस—यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में फूड ग्रेंट्स की बाधित होती सप्लाई। साथ ही इस समिट को ओपन रखते हुए सदस्य देश को मीटिंग में ही अपना एजेंडा रखने की अनुमति दी गई है। हालांकि, फिर भी अमेरिका द्वारा प्रस्तावित इंडो पैसेफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क इस बैठक का मूल एजेंडा रहने वाला है। इसके जरिये हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को आर्थिक तौर पर घेरने की योजना है। अमेरिका, यूरोप व एशिया के देशों को इस कार्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। एशिया से भारत व जापान इस योजना के पार्टनर हैं, तो अमेरिका खुद ही इसको आगे बढ़ाने का काम करेगा, जबकि अमेरिका के मित्रों के तौर पर यूरोप के देश भी इस योजना में परोक्ष रुप से जुडने जा रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया का 60 फीसदी समुद्री कारोबार इंडो पैसेफिक रीजन से होता है। इस हिंद प्रशांत क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए चीन बरसों से प्रयास कर रहा है। इसको लेकर वह श्रीलंका से लेकर पाकिस्तान और बंग्लादेश से लेकर इंडोनेशिया में बडै पैमाने पर निवेश कर रहा है, जबकि इन देशों को मोटे कर्जजाल में फंसाकर अपने हिसाब से काम करने को मजबूर कर रहा है। चीन कैसे हिंद महासागर से प्रशांत महासागर तक के छोटे देशों को अपने कब्जे में ले चुका है और उसकी काट में भारत ने कैसे जाल बिछाया है? इसकी विस्तार से चर्चा करना जरुरी है?
असल बात तो यह है कि क्वाड की स्थापना करने का मकसद ही चीन को घेरना था। इन दिनों रूस यूक्रेन युद्ध के मध्यनजर अमेरिका ने इस क्षेत्र के महत्व को इसलिए ज्यादा समझा है, क्योंकि रूस के खिलाफ अमेरिका जो करना चाहता था, उसमें भारत ने शामिल होने से खुले तौर पर इनकार कर दिया है। इसके बाद अमेरिका ने भारत से रिश्ते प्रगाढ़ करने के लिए कई कदम उठाए, जिनमें 2.80 लाख करोड़ का भारत में निवेश, 500 मिलियन डॉलर की हथियार सहायता जैसे कदम शामिल हैं। अमेरिका को यह समझ आ चुका है कि भारत को यदि उसकी जरुरतों के अनुसार मदद नहीं की गई, तो उसे अपने पक्ष में लेना असंभव है। रूस के साथ भारत की पुरानी मित्रता है और चीन व रूस भी घनिष्ठ मित्र हैं। ऐसे में यदि भारत को रूस से दूर करना है तो सबसे पहले उसको बडी सहायता देना होगा, साथ ही उसे चीन से टकराने के लिए उसे मजबूत भी करना होगा, क्योकि इंडो पैसेफिक रीजन में चीन को करारा जवाब देने के लिए भारत सबसे महत्वपूर्ण देश है। अमेरिका व चीन के बाद जापान इस वक्त दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत है। ऐसे में जापान जहां अमेरिका के साथ है, तो एशिया की ही दूसरी सबसे बड़ी शक्ति और तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के तौर भारत भी उसके साथ हो जाए तो चीन की हिमाकत नहीं होगी कि वह इस समुद्री क्षेत्र पर कब्जा कर पाए। यही कारण है कि क्वाड में अमेरिका, भारत, जापान और ओस्ट्रेलिया एकसाथ मिलकर इंडो पैसेफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क पर सहमत हुए हैं। साथ ही दक्षिण कोरिया जैसे देश को भी इस संगठन का हिस्सा बनाकर मजबूत किए जाने की संभावना बढ़ रही है।
यह बात सही है कि इस संगठन की परिकल्पना अमेरिका ने अपने हित देखकर चीन को घेरने के लिए की थी, लेकिन असल बात यह है कि अब इसका मुख्य सूत्रधार भारत बनता जा रहा है, क्योंकि हिंद महासागर पर भारत की पकड़ है और अमेरिका समेत किसी भी देश को इस क्षेत्र में घुसने से पहले भारत की इजाजत लेनी पड़ती है। आने वाले बरसों में जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनेगा, तब क्वाड का महत्व इसलिए बढ़ जाएगा, क्योंकि भारत ही वह देश है जो चीन को सीधे तौर पर चुनौती दे सकता है। आपको याद होगा, भारत ही पहला देश था, जिसने चीन की महात्वाकांक्षी रोड एण्ड बेल्ट परियोजना का विरोध किया था। इसके जरिये चीन पूरे एशिया को अपने कब्जे में लेना चाहता है, तो अपनी पहुंच यूरोप व दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप तक करना चाहता है। चीन की महात्वाकांक्षा और उसकी बदनीयत को भारत काफी पहले से जानता है, इसलिए चीन को सीधे तौर पर पैंगोंग झील में जवाब देने के बजाए उसको क्वाड जैसे संगठनों के जरिये परोक्ष रुप से घेरकर दबाव में ले रहा है, इस बात को ड्रेगन भी जानता है। यही कारण है कि दुनिया की दूसरी बड़ी ताकत होने के बाद भी भारत की आपत्ति पर चीन ने डोकलाम और लद्दाख में अपनी गतिविधियों को काबू में रखा है।

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