भारत के सहारे अमेरिका ने चीन की घेराबंदी शुरू की

Ram Gopal Jat
भारत के महत्व का पता वैसे तो बीते 110 दिन में तब चल ही गया, जब बार बार अमेरिका ने रूस के खिलाफ बोलने के लिये भारत को मनाने का प्रयास किया, लेकिन भारत ने कई मंचों पर साफ शब्दों में कह दिया कि वह ना तो रूस के गुट में है, ना ही अमेरिका वाले में है...इसलिये कोई भी शक्ति या महाशक्ति यह गलतफहमी नहीं रखें कि किसी दबाव में लेकर भारत से किसी के खिलाफ बयान दिलाया जा सकेगा। भारत ने अपनी निरपेक्ष नीति पर कायम रहते हुये इस दौर में ना अमेरिका के दबाव की परवाह की, और ना ही रूस को इतनी तवज्जो दी कि चीन सिर के उपर से निकलने लगे। इस बात को अमेरिका व चीन अच्छे से जान चुके हैं। यही कारण है कि अमेरिका ने अब भारत से दबाव के बजाये बराबर वाला बर्ताव शुरू कर दिया है। इसके कई उदाहरण हैं, जिनके बारे में आगे जिक्र करुंगा, लेकिन उससे पहले उस गुट के बारे में जान लीजिये, जो अमेरिका ने भारत का साथ लेकर चीन से युद्ध की संभावना से पहले बनाने की तैयारी शुरू कर दी है।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इजराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनैट और संयुक्त राज्य अमीरात के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जैयद अली 13 से 16 जुलाई के एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये आई2यू2 के नाम से एक नया क्वाड जैसा शिखर सम्मेलन शुरू करने के जा रहे हैं। इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब इन चारों देशों के विदेश मंत्री अक्टूबर 2021 में मिले थे। भारत के विदेश मंत्री डॉ सुब्रम्ण्यम जयशंकर जब इजराइल गये थे, तब इस ग्रुप को 'इंटरनेशनल फॉरम फॉर इकॉनोमिक कोर्पोरेशन' नाम दिया गया था। इसी ग्रुप को अब आई2यू2 नाम दिया जा रहा है। आई से इंडिया और इजराइल और यू से यूएस व यूएई है। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि अगले महीने जो बाइडन इजराइल, फिलीस्तीन, और सउदी अरब की यात्रा पर जाने वाले हैं। अमेरिका इन दिनों इजराइल, जॉर्डन, मिश्र के बीच सामन्जस्य बिठाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी तरह से अनैक मंचों के जरिये दुनिया के कई देशों के साथ अलग अलग समझौते कर रहा है।
कारण यह है कि अमेरिका अब पूरी तरह से चीन पर फॉकस कर रहा है, जो इन दिनों ताइवान पर सैन्य चढ़ाई करने की तैयारी में जुटा हुआ है। पिछले दिनों हुये क्वाड शिखर सम्मेलन के दौरान यह बात साफ हो चुकी है कि चीन ने यदि ताइवान पर सैन्य अभियान किया तो अमेरिका उसके खिलाफ आर्मी एक्शन लेगा। इसके साथ ही जापान भी अमेरिका के साथ खड़ा होगा। हालांकि, अमेरिका अभी तक भारत को अपने पक्ष में खुलकर नहीं कर पा रहा है, जिसके चलते उसको भारत को लेकर अलग अलग गुट बनाने पर मजबूर होना पड़ रहा है, क्योंकि भारत के कई देशों के साथ अलग अलग कारोबारी संबंध हैं, जिसके कारण अमेरिका उन सभी देशों को अपने साथ जोड़कर भारत को अपने साथ दिखाना चाहता है।
अमेरिका पहले इंडो पैसेफिक रीजन में चीन के बढ़ते खतरे को कम करने के लिये क्वाड की बड़ी ही भव्य बैठक आयोजित कर चुका है, जिसकी मेजबानी जापान ने की थी। यह बैठक काफी चर्चा में रही और ज्यादा अहम इसलिये रही, क्योंकि इस बैठक के जरिये अमेरिका व चीन के बीच ताइवान विवाद चरम पर पहुंच रहा है। इसमें चारों स्थाई देशों के अलावा 9 अन्य छोटे देशों को भी जोड़ा गया है। इसी तरह से अब आई2यू2 की पहली बैठक होने जा रही है। इसमें अमेरिका व इजराइल जहां पहले से ही खास मित्र हैं, तो भारत व यूएई को शामिल कर चीन की घेराबंदी करने का नया ग्रुप बनाया जा रहा है। इस ग्रुप का उद्देश्य समुद्री सुरक्षा, बंदरगाह निर्माण, डिजीटल इनफ्राक्ट्रस्चर और यातायात के मामले पर मिलकर काम करना है। इसी तरह से पिछले दिनों ही यूएई के भारत में राजदूत अहमद अल्बानी ने वेस्ट एशिया क्वाड के नाम से इसको संबोधित किया है। अमेरिका प्रशासन जनवरी 2021 से ही क्वाड के अलावा, ओस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के अलावा दूसरे गुट में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, उज्बेगिस्तान को लेकर भी एक क्वाड खड़ा किया है। कुल मिलाकर अमेरिका लगातार ​इसी प्रयास में है, कि रूस और चीन के अलावा जो भी देश हैं, उनको किसी ना किसी ग्रुप में जोड़ दिया जाये, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। ऐसा नहीं है कि अमेरिका कोई दूध का धुला हुआ है, बल्कि उसने हाल ही में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किये जाने के कारण मुंह की खानी पड़ी है, जिसके कारण वह डरा हुआ है। उसको पता है कि जिस तरह से यूक्रेन मामले में हार हुई है, उसी तरह से तमाम प्रयास करने के बाद भी यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया और उसमें ताइवान की हार हुई तो दुनिया से उसकी दादागिरी खत्म हो जायेगी, उसके बाद कोई भी देश डरेगा नहीं। पिछले साल ही अमेरिका बिना नतीजा हासिल किये अफगानिस्तान से बाहर निकला है। उससे पहले इराक में सफल रहा था, लेकिन उसके बाद से अमेरिका लगातार एक तरह से हार ही रहा है।
उसकी सबसे बड़ी हार तो यूक्रेन पर रूस का हमला और उसमें यूक्रेन को हथियार मुहइया करावाने व रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने के बाद भी रूस का पीछे नहीं हटना है। असल में चीन भी रूस को पीछे से सहायता दे रहा है, जबकि अमेरिका ने दुनिया के सभी देशों को कहा है कि कोई भी रूस को सहायता नहीं देगा। चीन खुलेआम रूस का साथ दे रहा है, इससे जाहिर है कि आने वाले समय में यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो रूस भी चीन को सहायता देगा। इस वक्त दुनिया तीन गुटों में बंटी हुई है। पहले गुट में अमेरिका है, जिसके साथ यूरोपीयन नाटो देशों के अलावा इजराइल, जापान और ओस्ट्रेलिया जैसे देश हैं, जबकि दूसरे गुट में चीन व रूस के साथ उनके मित्र देश हैं। इन दोनों गुटों के अलावा भारत का तीसरा गुट है, जिसमें कुछ निष्पक्ष रहने का प्रयास करने वाले देश हैं। वैसे दुनिया की तीन ही बड़ी शक्तियां हैं, पहली अमेरिका, दूसरी चीन और तीसरी ताकत है भारत। इसलिये अमेरिका भारत को किसी भी तरह से अपने पाले में लेने का प्रयास करता रहता है, ताकि उसका पलड़ा भारी हो जाये।
फिलहाल भारत अपने विकास पर फोकस कर रहा है, ताकि आने वाले वर्षेां में संभावित चीन युद्ध से मुकाबला कर पाये। यही कारण है कि भारत किसी भी गुट में फंसकर किसी के खिलाफ नहीं होना चाहता है। दो दिन पहले समाप्त हुये सांगरी लॉ डायलॉग में चीन द्वारा भारत के खिलाफ गतिविधि करने पर अमेरिकी नीति के बारे में पूछे गये सवाल पर बोलते हुये अमेरिका के रक्षा मंत्री ने कहा कि वह अपने मित्रों के साथ खड़ा है। इसका मतलब यह है कि अमेरिका भारत को यह जताना चाहता है​ कि वह मुसीबत में भारत के साथ खड़ा रहेगा। अमेरिका के एक इंडो पैसेफिक रीजन के जनरल ने पिछले दिनों ही भारत को चेताया है कि चीन भारत की सीमा के पास बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य करने में जुटा हुआ है। जहां पर चीन ने 17 से अधिक हवाई पट्टियां बनाई हैं। इसी तरह से बड़े स्मतर पर सड़कों का जाल बिछा रहा है, जिससे पता चलता है कि चीन की भारत के प्रति नीयत ठीक नहीं है, वह कभी भी भारत को एलएसी पर धोखा दे सकता है।
चीन की अवैध गतिविधियों वाली रिपोर्ट्स के बाद अब भारत ने भी अहम कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। हालांकि, अभी तक भारत किसी भी देश के साथ नहीं है, लेकिन कभी इस तरह के समीकरण बनते हैं कि चीन व रूस एक तरफ होकर हिंद प्रशांत सागर में युद्ध के जरिये समीकरण बदलने का प्रयास करेंगे, तो तय है कि भारत भी मजबूरन अमेरिका की तरफ से लड़ सकता है। हालांकि, 2020 में लद्दाख के पौंगोंग झील के पास विवाद के बाद भारत की कोशिश यही है कि चीन से फिलहाल कोई भी दुश्मनी या दोस्ती नहीं की जाये, तो चल रहा है, वही ठीक है। यानी भारत अपने विकास के जरिये पहले चीन के बराबर आना चाहता है, ताकि चीन खुद ही इस बात को समझ जाये कि भारत से टकराना ठीक नहीं है।
जबकि अमेरिका इस समय दो तरफा दबाव झेल रहा है। अमेरिका एक ओर जहां यूक्रेन मामले में रूस के सामने मुंह की खाकर बैठा है, तो दूसरी तरफ चीन द्वारा ताइवान पर हमला किये जाने की तैयारी में है। इसके कारण उसको भारत जैसे मजबूत और विश्वसनीय सहयोगी की जरुरत है। जिसके लिये ही वह बार बार कोशिशें कर रहा है।

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