कांग्रेस को आने लगी सचिन पायलट की याद

Ram Gopal Jat
राहुल गांधी और सोनिया गांधी को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने इतना बवाल क्यों मचाया? अगर देश के किसी प्रतिष्ठित संस्था को यह लगता है कि वित्तीय अनियमितता है, तो संस्था को पूछताछ से लेकर नियमानुसार कार्रवाई करने का पूरा हक है, पर सवाल यह खड़ा होता है कि अगर राहुल गांधी, सोनिया गांधी सब अपनी जगह ठीक हैं तो फिर कोई भी जांच एजेंसी जांच कर ले, क्या फर्क पड़ता है? लेकिन जिस तरीके की बौखलाहट कांग्रेस के नेताओं की नजर आ रही है, वह अपने आप में कई सवाल खड़े करती है।
मसलन अब आप राजस्थान के नेताओं को देख लीजिए, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिल्ली में पैदल मार्च में शामिल हुए, वह बैरीकैडिंग के पास खड़े होकर आम कार्यकर्ता की तरह वीडियो और फोटो खींचवाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं, तो इधर जयपुर में पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व में प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों के साथ पार्टी दफ्तर से ईडी मुख्यालय तक पैदल मार्च निकाला है। इस विरोध प्रदर्शन में मोदी सरकार पर हमला बोलने से ज्यादा सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की हुई कि गोविंद सिंह डोटासरा के संबोधन में अपनी ही सरकार के मंत्रियों को लताड़ लगाने की जरुरत क्यों पड़ी? इस मार्च की रैली को संबोधित करते हुये डोटासरा मंत्रियों और विधायकों की कार्यशैली पर तीखे सवाल उठाते हुये बोले कि कुछ नेता सरकार में पद लेकर तो बैठे हैं, लेकिन जब संघर्ष के लिए सड़क पर उतरना होता है, तो वह समर्थक लाने के बजाय अपने गनमैन लेकर प्रदर्शनों में पहुंच जाते हैं। डोटासरा के इस बयान के मायने ये हैं कि अगर ज्यादा भीड़ आएगी तो प्रदर्शन ज्यादा प्रभावी लगेगा और इससे अशोक गहलोत से लेकर केंद्रीय आलाकमान की नजर में डोटासरा के नंबर बढ़ेगें। कम भीड़ जुटने से आहत डोटासरा बोले धरना प्रदर्शन कम और हंसी मजाक का कार्यक्रम ज्यादा लगता है।
डोटासरा यहीं नहीं रुके, आगे कहा कि कल हमें भी जब पकड़कर जेलों में ठूसा जाएगा, उस समय हमारे पक्ष में कोई नहीं बोलेगा? क्योंकि जब हमारे नेता, हमारे पार्टी प्रमुख पर हाथ उठाया, तब भी हम नहीं बोले। ऐसे में अब संदेश यह जाना चाहिए राहुल गांधी पर कार्रवाई करने का प्रयास है, उसके बाद भाजपा और मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई, लगना चाहिए कि हम लोग जाग गए हैं, कांग्रेस के कार्यकर्ता सड़कों पर आ गया है।
डोटासरा द्वारा इशारों इशारों में समझाने वाले बयान पर सियासी जानकारों का कहना है कि इस प्रकार के धरने—प्रदर्शन ना केवल राहुल गांधी के बचाव के लिए हैं, बल्कि राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार में कई मंत्रियों पर गंभीर आरोप हैं, जिनमें खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर मंत्री अशोक चांदना, प्रताप सिंह खाचरिवास, परसादी लाल मीणा, सुभाष गर्ग, प्रमोद जैन भाया और कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा समेत कई विधायक शामिल हैं। इनमें से कईयों को आने वाले दिनों में जांच एजेंसियां पूछताछ के लिए बुला सकती हैं, और अपराध सिद्ध होने पर जेल की सलाखों के पीछे डाल सकती हैं। आपको बता दें कि अशोक गहलोत पूर्ववर्ती सरकार में भी बाबूलाल नागर से लेकर महिपाल मदेरणा को मंत्री रहते जेल जाना पड़ा था।
गौरतलब है कि यह कोई पहला मौका नहीं है, जब गोविंद सिंह डोटासरा ने अपनी सरकार के मंत्रियों को आड़े हाथों लिया। पिछली बार जब मोदी सरकार की महंगाई के खिलाफ राजस्थान कांग्रेस ने प्रदर्शन किया था, तब भी गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा था कि मंच पर बोलने से नेता क्यों डरते हैं? क्या मोदी का डर लगता है? ईडी का डर लगता है? क्योंकि उस कार्यक्रम में भी एक-दो मंत्री ही बोले थे, बाकी नेता मंच पर बैठकर ही चले गए थे। दूसरी तरफ पार्टी के भीतर कई नेता गोविंद सिंह डोटासरा को खुलेआम प्रदेश अध्यक्ष मानने से इंकार कर चुके हैं। कोविड के दौर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मौजूदगी में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के समय यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल और डोटासरा के बीच तू तू मैं मैं सार्वजनिक रूप से सबके सामने आ चुकी है। इसलिए भी गोविंद सिंह डोटासरा अपने प्रदेशाध्यक्ष के कद को बरकरार रखने के लिए इस तरीके के प्रयास करते रहते हैं। धारीवाल ने उनको अध्यक्ष मानने से ही मना कर दिया था, ठीक इसी तरह से खाचरिवास और डोटासरा में भी सियासी जंग जग जाहिर है। दोनों के बीच खुद को बड़ा साबित करने की परोक्ष लड़ाई चलती देखी जा सकती है।
आपको याद होगा, गोविंद सिंह डोटासरा को 15 जुलाई 2020 को सचिन पायलट के बगावत करने के बाद अध्यक्ष बनाया गया था, तब सचिन पायलट को अशोक गहलोत के दबाव में कांग्रेस आलाकमान ने अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया था। उस वक्त सियासी संकट के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मेहरबानी से राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा बने थे। इसलिए राजस्थान कांग्रेस के तमाम नेता जानते हैं, कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को खुश रखना हैं। किसी मंत्री या विधायक को गोविंद सिंह डोटासरा की नाराजगी से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि कांग्रेस के नेताओं में यह धारणा गहरे से बैठ गई है कि डोटासरा केवल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुखपत्र से अधिक कुछ नहीं हैं, हर बात में फाइनल फैसला तो गहलोत ही करेंगे। इसके चलते भी कांग्रेस के नेता पार्टी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा को ज्यादा भाव नहीं देते हैं।
आज करीब 23 महीनों से डोटासरा पार्टी के अध्यक्ष हैं, लेकिन आज तक जिला अध्यक्ष तक नहीं बना पाये हैं। पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों का कोई पता ठिकाना नहीं है। एक बार केवल 39 लोगों की लिस्ट निकाली थी, उसके बाद पार्टी का संगठन क्या है और कहां काम कर रहा है, इसकी कोई जानकारी जनता को नहीं है। इसकी बानगी कई बार देखने को मिली है। भले ही पार्टी अध्यक्ष के तौर पर कार्यक्रर्मों में उनको अध्यक्ष के तौर पर ​मंच पर बिठाया जाता हो, लेकिन उनकी कहीं पर छाप दिखाई नहीं देती है।
कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता डोटासरा की जब पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट से तुलना करते हैं, तब डोटासरा पायलट के आगे कहीं भी नहीं ठहरते हैं। कांग्रेस के नेता ही साफ कहते हैं कि जब पार्टी विपक्ष में थी और पायलट अध्यक्ष थे, तब उनके आगे किसी नेता की जुबान नहीं खुलती थी, यहां तक कि अशोक गहलोत और सीपी जोशी जैसे नेता भी सचिन पायलट से अध्यक्ष के तौर पर खौफ खाते थे। कितने भी बड़े या छोटे नेता हो, किसी ने कभी पायलट के सामने जुबान चलाने की हिम्मत नहीं की थी, पार्टी अध्यक्ष का कैडर क्या होता है और अध्यक्ष के सामने किस तरह से पेश आया जाता है, यह बात पायलट ने कांग्रेस नेताओं को अच्छे से सिखाई थी। बगावत के समय इसका सबूत बकायदा खुद अशोक गहलोत के इस बयान से जाहिर हो जाता है कि अध्यक्ष रहते हुये सचिन पायलट के अध्यक्षीय कैडर का हमने मान सम्मान किया था।
कांग्रेस के कार्यकर्ता तो आज भी कहते हैं कि जब सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री बन गये थे, तब भी उनके प्रोटोकॉल में कोई कमी नहीं आई थी, जिसके कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ईगो हर्ट होता था, नतीजा यह हुआ कि गहलोत उनको जल्द से जल्द अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे। जिसके कारण दोनों के बीच पॉवर की खींचतान मची और अंतत: कांग्रेस में ऐतिहासिक बगावत का दौर शुरू हुआ। सचिन पायलट जब उपमुख्यमंत्री बने, तब पीसीसी में गहलोत के जाने के समय अध्यक्ष का कैडर पता चलता था, क्योंकि मुख्यमंत्री होने के बाद भी गहलोत हमेशा पायलट से छोटी कुर्सी पर बैठते थे, तब भी कांग्रेस के लोग चर्चा करते थे कि वाकई में संगठन में अध्यक्ष खुद मुख्यमंत्री से कहीं बड़ा होता है। किंतु दुर्भाग्य से सचिन पायलट कुर्सी से हटे और उसके बाद पीसीसी चीफ का कद ही घट गया। यहां त​क कि उपचुनाव और तमाम पंचायती राज चुनाव के दौरान भी डोटासरा अध्यक्ष होने के बावजूद गहलोत के पीछे खड़े रहते थे।
हाल ही में जब तीन राज्यसभा सीटों के लिये चुनाव हुये, तब भी अध्यक्ष होने के बावजूद गोविंद सिंह डोटासरा का कहीं पर रोल दिखाई नहीं दिया, जबकि उनके राजनीति बराबरी वाले सतीश पूनियां ने बताया है कि अध्यक्ष का प्रोटोकॉल क्या होता है और कैसे संगठन को चलाया जाता है। चाहे नेताओं से बात करनी हो, या मीडिया को जवाब देने हों, हर बार डोटासरा गहलोत के पीछे ही रहे हैं। वैसे अशोक गहलोत की यही शैली है, वह जब तक मुख्यमंत्री रहते हैं, तब तक अध्यक्ष को एक तरह से अपनी रबर स्टाम्प बनाकर रखते हैं। इससे पहले अपने दूसरे कार्यकाल में ही गहलोत ने डॉ चंद्रभान को अध्यक्ष बनाकर ऐसे ही पीसीसी चीफ के पद की गरीमा को कमजोर करने का काम किया था।
जबकि कांग्रेस आलाकमान और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राज्य में सत्ता रिपीट करने का दावा कर रहे हैं, तब सवाल यह उठता है कि क्या गोविंद सिंह डोटासरा के अध्यक्षीय काल में कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ने की हालात में दिखाई भी देती है? क्योंकि ना तो पार्टी का संगठन है, ना ही डोटासरा का ऐसा कद है, कि उनको सीकर से बाहर भी कहीं पर जीत हासिल हो सके। ऐसे में साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि गहलोत चाहें या नहीं चाहें, लेकिन चुनाव से पहले पीसीसी चीफ की कमान एक बार फिर से सचिन पायलट को ही देनी होगी, तभी पार्टी कुछ हद तक भाजपा से मुकाबला कर पायेगी, अन्यथा भाजपा नेताओं की जुबानी तो कांग्रेस 2023 में टेम्पो की सवारी ही करती नजर आ रही है।

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