भारत के निशाने पर पीओके नहीं बलूचिस्तान

Ram Gopal Jat
एक दिन पहले जब पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने बयान दिया कि भारत, अमेरिका और इस्राइल मिलकर पाकिस्तान के तीन टुकड़े करने पर तुले हैं और पाकिस्तान का परमाणु दर्जा भी छीनने का प्लान कर रहे हैं, तब भले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने उनको मानसिक रुप से दिवालिया करार देकर संकट से मुंह मोड़ने की कोशिश की हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत, अमेरिका और इस्राइल का गठबंधन इसको लेकर बहुत कुछ करने में जुटा है। क्या है भारत की रणनीति? किस खेल में जुटा है भारत, और क्या है सफल होने की संभावना? अमेरिका को क्यों है पाकिस्तान की तबाही में रुचि, तो इस्राइल को पाकिस्तान से क्या है तकलीफ? इस विषय की गहराई से पड़ताल करेंगे, लेकिन उससे पहले यह जान लीजिये कि बीते साल अफगानिस्तान पर काबिज हुये आतंकी संगठन तालिबान और भारत के बीच क्या गठबंधन चल रहा है? क्या तालिबान के जरिये भी भारत ने पाकिस्तान को घेरने की रणनीति बनाई है? क्या भारत अब अफगानिस्तान में तालिबानी शासन को मान्यता देने जा रहा है?
तालिबान राज में पहली बार भारत के राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के आश्‍वासन के बाद वरिष्‍ठ अधिकारियों का दल काबुल गया है। यह दल अफगानिस्‍तान में दी जा रही मानवीय सहायता का निरीक्षण करेगा और भारतीय अधिकारी तालिबान के वरिष्‍ठ नेताओं से मुलाकात भी करेंगे। इससे पहले अजीत डोभाल ने अफगानिस्‍तान को आश्‍वासन दिया था कि चाहे हालात कैसे भी हों, भारत अच्छा दोस्त था और भविष्य में भी रहेगा। तालिबान ने भी भारत से काबुल में दूतावास खोलने की गुहार लगाई है। भारतीय दल का नेतृत्‍व पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान, ईरान के मामलों पर विदेश मंत्रालय में ज्‍वाइंट सेक्रेटरी जेपी सिंह कर रहे हैं। इससे पहले पिछले साल जेपी सिंह ने दिल्‍ली में अफगानिस्‍तान को लेकर हुई बैठक में तालिबानी नेताओं के साथ मुलाकात की थी। यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हुआ है, जब तालिबानी शासन को मान्‍यता नहीं देने के बावजूद भारत, अफगानिस्‍तान को लगातार मानवीय सहायता भेज रहा है।
भारत दुनिया में अफगानिस्‍तान का एकमात्र सच्‍चा दोस्‍त है, इस बात का सबूत यह है कि भारत बीते एक साल से अफगानिस्तान में गेहूं, पोलियो के टीके, कोरोना वैक्सीन और सर्दियों के कपड़े भेज रहा है। इससे पहले अफगानिस्‍तान में तालिबान राज आने के बाद भारत ने अपने दूतावास को काबुल में बंद कर दिया है। भारतीय अधिकारियों का दल अंतरराष्‍ट्रीय संस्‍थाओं के प्रतिनिधियों से मुलाकात करेगा, जो मानवीय सहायता बांटने में लगी हुई हैं। भारत ने हाल ही में अफगानिस्‍तान को 20 हजार मीट्रिक टन गेहूं और 13 टन दवाएं भेजी हैं। भारतीय दल अपनी यात्रा के दौरान उन सभी जगहों पर जा सकता है, जहां पर भारतीय सहायता से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। भारत ने पूर्ववर्ती सरकार के दौर में अफगान संसद और हेरात प्रांत में मित्रता बांध का निर्माण किया था। इससे पहले तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने दावा किया था कि अगर भारत काबुल स्थित अपने दूतावास को खोलता है, तो उसकी सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। मुत्‍ताकी ने समुद्र के रास्ते गुजरात होते हुये भारत पहुंच रहे अवैध ड्रग्स का ठीकरा अमेरिका के सिर पर फोड़ते हुये कहा है कि भारत में मादक पदार्थों की तस्करी अफगानिस्तान में अमेरिकी शासन के दौरान नशीले पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि का परिणाम है। इसके साथ ही तालिबानी नेता अनस हक्‍कानी ने भी भारत की दिल खोलकर तारीफ करते हुये कहा है कि भारत के लिए अफगानिस्तान के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं। हक्‍कानी ने क्रिकेट के जरिए भी भारत और अफगानिस्तान के संबंधों को मजबूत करने पर भी पूरा जोर दिया था।
अब इस बात को समझिये, कि आखिर कल तक जिस तालिबान को भारत एक आतंकी संगठन ही बोलता था, आज उसको इतनी सहायता क्यों दे रहा है, जबकि दोनों देशों के बीच बसा पाकिस्तान भूखे मरने की हालात में पहुंच चुका है, फिर भी भारत उसे सहायता नहीं दे रहा है? हजारों वर्षों से यह बात चरित्रार्थ होती रही है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। आचार्य चाण्क्य ने करीब ढाई हजार साल पहले देश—विदेश नीति का जिक्र विस्तार से किया है, वह आज ​भी वैश्विक परिदृय में एकदम सटीक बैठती है। पिछले 75 साल में एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा, जब पाकिस्तान ने भारत के टुकड़े करने की सौगंध नहीं खाई हो। इसके लिये पाकिस्तानी फौज और आतंकियों ने 1948, 1965, 1971, 1999, 2016, 2019 में भारत पर आतंकी हमले कर तोड़ने के खूब प्रयास किये हैं। आज भी कश्मीर में जिस तरह से चुन चुनकर हिंदुओं की हत्यायें की जा रही हैं, उसमें पाकिस्तान का ही हाथ है।
लेकिन जब से भारत आजाद हुआ है, तब से अफगानिस्तान के साथ भारत के रिश्ते हमेशा मधुर रहे हैं। अफगानिस्तान की जनता भी भारत को खूब पसंद करती है, यहां कि फिल्मों को लेकर भी अफगानिस्तान में क्रेज है, जो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अफगानिस्तान में खासी लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि भले ही अफगान में शासन किसी का भी रहा है, लेकिन वहां की आम आवाम भारत को बेहद पसंद करती है। यही कारण है कि पिछले साल जब अमेरिका ने अफगान को खाली किया और वहां की सरकार के राष्ट्रपति से लेकर मंत्री और अफसर देश छोड़कर भाग रहे थे, तब तालिबान ने भारत के नागरिकों को सुरक्षा देने का भरोसा दिया था। अब भले ही भारत ने अभी तक तालिबानी शासन को मान्यता नहीं दी हो, लेकिन जिस तरह से अजीत डोभाल की अगुवाई में भारत ने ​तालिबानी शासन के साथ बातचीत शुरू की है, वह निश्चित ही पाकिस्तान के लिये खतरे की घंटी है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में दुश्मनी जग जाहिर है, ऐसे में भारत और अफगानिस्तान की बढ़ती दोस्ती ने पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है।
भारत एक तरफ इरान से दोस्ती को मजबूत कर रहा है, दूसरी ओर अफगानिस्तान के शासन से हाथ मिला रहा है, तो तीसरी ओर कश्मीर को विकास के मार्ग पर ले जाकर वहां पर शांति स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। भले ही आज पाकिस्तान में चीन सबसे बड़ी और महात्वाकांक्षी योजना सीपीईसी का निवेश हो रहा हो, लेकिन भारत की विदेश नीति ने चीन को भी फिर से सोचने को मजबूर कर दिया है। भारत किसी भी तरह से पाकिस्तान को चारों ओर से घेरकर रखना चाहता है। पाकिस्तानी शासन की ओर से लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि भारत ने बलूचिस्तान को अलग करने के लिये खूब काम किया है। आज बलूच के लोग भारत को अपना सच्चा दोस्त और पाकिस्तान को दुश्मन मानते हैं। इमरान खान जब सत्ता में थे, तब पाकिस्तानी इंटेलिजेंस, आईएसआई और सेना की रिपोर्ट ने उनके होश उड़ा दिये थे। इमरान खान सरकार को रिपोर्ट मिली थी कि भारत, अमेरिका व इस्राइल मिलकर पाकिस्तान को तीन टुकड़ों में बांटने का प्रयास कर रहे हैं। इससे बचने के लिये इमरान खान ने चीन से हाथ मिलाया, ताकि संकट के समय चीन उसका साथ दे, लेकिन दो माह पहले पद गंवाने के बाद अब इमरान खान के हाथ में कुछ भी नहीं रहा है। इधर, शाहबाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी को पहले से अमेरिकी परस्त माना जाता है। यही कारण है कि इमरान खान बार—बार पाकिस्तान में गृहयुद्ध, टुकड़े करने और पाकिस्तानी शासन पर अमेरिका का पिछलग्गू बनने के आरोप लगा रहे हैं।
इसमें कितनी सच्चाई कि भारत बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग करने का प्रयास कर रहा है, लेकिन यह बात तो खुद गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कही है कि पीओके भारत का हिस्सा है और उसको वापस लेकर रहेंगे। इसी से पाकिस्तान को समझ आ जाना चाहिये कि भारत क्या करने जा रहा है? रही बात बलूचिस्तान की, तो इस प्रांत में अलगाववाद इतना भड़क चुका है कि कभी भी यह अलग देश बन सकता है। यहां पर पाकिस्तानी सेना शासन कायम रखने के लिये अत्याचार करती है, लेकिन अंतरर्राष्ट्रीय दबाव के चलते मानवाधिकारों के मामले में सेना को पीछे हटना पड़ता है। पाकिस्तान जहां एक तरफ आर्थिक रुप से कंगाली के द्वार पर खड़ा है, तो बलूचिस्तान की आजादी, पीओके पर भारत की नजर तो दूसरी ओर अफगानिस्तान का तालिबानी शासन उसको चेन की नींद नहीं लेने दे रहा है। इस्राइल की बात की जाये तो वह पूरी दुनिया में उनको कमजोर करने का काम करता है, जो कट्टर इस्लामिक देश हैं और जहां पर लोकतंत्र से ज्यादा इस्लामिक मान्यताओं को तहरीज दी जाती है। अमेरिका व इस्राइल पक्के दोस्त हैं। दोनों एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं, जबकि भारत और इस्राइल के बीच भी गहरी मित्रता है, जिसने इमरान खान को सरकारी बात सार्वजनिक करने को मजबूर किया है।
पाकिस्तान में लंबे समय से अमेरिका का दबदबा रहा है, उसने हमेशा पाकिस्तान को मदद की है। लेकिन जब से अमेरिका अफगानिस्तान में घुसा है, तब से उसकी पाकिस्तान पर पकड़ कमजोर हो गई, जिसका फायदा उठाते हुये चीन वहां पर घुस गया और उसने सीपीके के नाम पर अरबों डॉलर का निवेश कर पाकिस्तान को अपना पिट्ठू बना लिया। नतीजा यह हुआ कि इमरान खान जैसे नेताओं ने चीन के गुणगान गाने और अमेरिका को गरियाना शुरू कर दिया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रेडिकल इस्लामिक टेरेरिज्म कहकर आतंकवाद को अलग तरह से परिभाषित किया था, तभी दुनिया को समझ आ गया था कि अमेरिका किस तरफ जाने वाला है। अमेरिका इस बात को जानता है कि पाकिस्तान आतंकवाद की बड़ी फैक्ट्री है, इसलिये जब तक इस फैक्ट्री को बंद नहीं किया जायेगा, तब तक भारत में शांति स्थापित नहीं हो सकती है। और जब तक भारत में आतंकी गतिविधियां खत्म नहीं होगी, तब तक वह विकास नहीं कर सकता, यदि भारत विकास नहीं करेगा तो चीन भारी पड़ता जायेगा, जो अमेरिका के लिये हिंद प्रशांत क्षेत्र में कारोबारी तौर पर चिंता का विषय है। इसलिये भारत, अमेरिका और इस्राइल इस वक्त पाकिस्तान के टुकड़े कर उससे परमाणु सम्पन्न देश का दर्जा छीनने की योजना को पूरा करने में जुटे हैं।
भारत, अमेरिका और इस्राइल के अपने अपने फायदे हैं, जिसके कारण तीनों देश मिलकर पाकिस्तान को टुकड़ों में बांटना चाहते हैं। यह बात सबको पता है कि जब तक पाकिस्तान के पास परमाणु बम है, तब तक भारत भी आसानी से उसको हरा नहीं पायेगा, इसलिये भारत भी पहले उसके टुकड़े कर परमाणु बम हटाना चाहता है। यदि पाकिस्तान के तीन टुकड़े होते हैं तो बलूचिस्तान पर भारत की पकड़ होगी, जिसके चलते चीन भी अपनी सीपेक योजना को पूरा नहीं कर पायेगा। इधर, पाकिस्तान के टुकड़े होने पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भी भारत आसानी से वापस ले पायेगा। यही कारण है कि इमरान खान ने पाकिस्तान की सेना, वहां की जनता और सत्ता से अपील की है कि देश को मजबूत करना जरुरी है, अन्यथा टुकड़े होकर रहेंगे।

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