मोदी के हिंदू राष्ट्र मिशन को समझना आसान नहीं है

Ram Gopal Jat
पिछले कुछ बरसों से देश में अजीब सी बैचेनी है। चाहे बॉलीवुड हो या राजनीति में, हर जगह हिंदू धर्म के चहेते लोगों को अजीब से उर्जा और कुछ पा लेने की चाह के रुप में देखा जा रहा है। कहा जाता है कि करीब 5—6 दशक पहले ही बॉलीवुड पर अंडरवर्ल्ड का कब्जा होना शुरू हो गया था, जो बीते 3 दशक से चरम पर पहुंचा। इस दौर में अपने चहेते कलाकारों को सुपर स्टार बनाया गया और जो वास्तव में सुपर स्टार थे, उनको बेरोजगार कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि दर्शकों ने करीब 40—50 साल तक हिंदू धर्म का अपमान देखा और इस अपमान के जहर का घूंट पीया। केंद्रीय सत्ता में साल 2014 में नरेंद्र मोदी का प्रादुर्भाव होने के पीछे यह भी एक कारण था। साथ ही जिस तरह से केंद्र की राजनीति में कांग्रेस पार्टी के द्वारा अपने गठबंधन साथियों के साथ मिलकर हिंदू आतंकवाद का नारा बनाकर सनातन धर्म को बदनाम करने का अभियान चलाया गया, जिससे परेशान होकर देश की जनता ने मोदी को अपना लीडर चुन लिया।
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता पर बैठे तो उनके सामने दोहरी चुनौती थी। एक तरफ हिंदूओं का खोया विश्वास पुन: बहाल करना था, तो दूसरी ओर देश के विकास की रफ्तार भी कई गुणा अधिक करनी थी। मोदी ने जिस मिशन मोड पर काम अपने हाथ ​में लिया, उसका नतीजा देखने को मिल रहा है। विकास के मामले में भारत आज दुनिया के सबसे तेजी से विकास करने वाले देशों में शुमार है, तो जो नैरेटिव बरसों तक हिंदूओं को कुंठित करने के लिये बनाया जा रहा था, उसको भी तोड़ने का काम किया गया। बायकॉट के कारण पिछले कुछ समय से जिस तरह से अंडरवर्ल्ड के चहेतों की फिल्में सिनेमा हॉल में दम तोड़ रही है, उससे साफ है कि यह हिंदू जागरण का दौर चल रहा है। किसी फिल्म में एक जरा सा सीन भी हिंदूओं के खिलाफ बर्दास्त नहीं किया जा सकता। यदि कोई बोलता है, तो उसको भी सजा मिलती है।
इधर, राजनीति के हिसाब से देखें तो भाजपा इसको प्रत्यक्ष करके दिखा रही है। केंद्र में कोई मुस्लिम मंत्री नहीं, भाजपा का कोई सांसद मुसलमान नहीं है, पार्टी के 1300 से ज्यादा विधायकों में से चंद विधायक मुस्लिम समाज से आते हैं। किसी राज्य का मुख्यमंत्री मुस्लिम नहीं है, केरल में आरिफ खान को छोड़कर कोई राज्यपाल मुसलमान नहीं है। एक तरह से भाजपा मुस्लिम मुक्त हो चुकी है। पिछले दिनों आपने देखा होगा कि बिहार में भाजपा का गठबंधन टूट गया। लोगों को लगा कि नीतिश कुमार ने तोड़ दिया, बल्कि हकिकत यह है कि भाजपा नहीं चाहती थी कि उसके मिशन में कोई भी सहयोगी आड़े आये, चाहे इसके लिये उनको सत्ता ही क्यों नहीं गंवानी पड़े। नीतिश कुमार ने एनआरसी, समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून का समर्थन नहीं किया। साथ ही अग्निपथ पर भी केंद्र सरकार के खिलाफ काम किया, नजीता यह हुआ कि अग्निपथ के विरोध में सबसे अधिक हिंसा बिहार में ही हुई।
तभी भाजपा ने नीतिश कुमार को भाव देना बंद कर दिया। उपर से राष्ट्रपति बनने का सपना देख रहे नीतिश को तब झटका लगा, जब आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया गया। उपराष्ट्रपति पर भी जगदीप धनकड़ का चुनाव कर नीतिश कुमार के सपनों को तोड़ दिया गया। यही कारण रहा है कि नीतिश कुमार को आगे बढ़कर गठबधंन तोड़ने को मजबूर कर दिया गया। कहने का मतलब यह है कि भाजपा की मोदी सरकार ने दो मामलों पर कोई भी समझौता करने से इनकार कर दिया है। पहला तो हिंदू धर्म के खिलाफ कोई जायेगा तो वह बक्शा नहीं जायेगा, दूसरा यह कि विकास के मामले में कोई रोडे अटकाये तो उसको भी छोड़ नहीं जायेगा।
लोग कई बार मोदी सरकार के कुछ कदमों से नाराज हो जाते हैं। जैसे नुपूर शर्मा के खिलाफ भाजपा द्वारा एक्शन लेने पर बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर गुस्सा जाहिर किया गया। ठीक ऐसे ही इन दिनों हैदराबाद के विधायक ठाकुर राजा सिंह के खिलाफ भाजपा ने निलंबन का कदम उठाया तो भी हिंदू नाराज हो रहे हैं। नुपूर शर्मा के मामले में देश के मुसलमानों ने विरोध किया, हिंसा की और कई जगह लोगों की गला काटकर हत्या कर दी गई, तब तक भी भाजपा चुप रही, लेकिन जब यह मामला खाड़ी देशों में उठाया जाने लगा, वहां के लाखों भारतीय कामगारों को हटाया जाने लगा, और भारत के संबंध बिगड़ने लगे, तब जाकर भाजपा ने नुपूर शर्मा को निलंबित किया। निलं​बन का अर्थ हमेशा अस्थाई होता है, उसको कभी भी रद्द किया जा सकता है। आप इस बात को समझिये की खूब हल्ले के बाद भी नुपूर शर्मा की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो सकी? और किसी जिहादी द्वारा हमला नहीं कर दिया जाये, इस​के लिये नूपूर को वाई प्लस सुरक्षा क्यों मुहइया करवा दी गई?
टी राजा सिंह की बात करें तो उनको एक दिन पुलिस ने गिरफ्तार किया, लेकिन कोई सबूत नहीं होने के कारण कोर्ट ने उसी दिन रिहा कर दिया गया। हैदराबाद के सांसद असद्दूदीन ओवैशी के दबाव में हैदराबाद पुलिस ने एक दिन पहले उनको फिर गिरफ्तार किया, लेकिन सबूत अब भी नहीं है। टी राजा ने जो बयान दिया था, उसमें ना को किसी धर्म का नाम है और ना ही पैगंबर मोहम्म्द का नाम लिया गया है, इसलिये उनके खिलाफ ऐसा कोई मामला बनता ही नहीं है। हालांकि, भाजपा ने नुपूर शर्मा के मामले में खाडी देशों से बिगड़े संबंधों को ध्यान में रखते हुये टी राजा को निलंबित कर दिया है, किंतु इसका मतलब यह नहीं है कि भाजपा टी राजा से दूर भाग गई है। उनको कानूनी सहायता से लेकर सुरक्षा भी दी जा रही है।
राष्ट्रीय मुद्दे अलग होते हैं, जबकि अंतर्राष्ट्रीय सबंध अलग तरह से होते हैं। खाड़ी देशों के साथ भारत का बहुत बड़ा कारोबार है और वहां पर भारत के लाखों लोग काम करते हैं। भारत के अंदरुनी मामलों को लेकर दूसरे देशों से संबंध खराब नहीं किये जा सकते। इसके चलते जैसे ही धार्मिक मामले को उछाले जाने की बात सामने आती है, वैसे ही भाजपा, या कहें कि मोदी सरकार पीछे हट जाती है। यही वजह रही कि भाजपा ने नुपूर शर्मा और टी राजा सिंह को पार्टी से निलंबित कर दिया, लेकिन दोनों के पक्ष में सुरक्षा से लेकर कानूनी मदद का काम भी पार्टी द्वारा किया जा रहा है। इससे साफ है कि केंद्र सरकार अपने लोगों का साथ नहीं छोड़ती है।
केंद्र सरकार संविधान के अनुसार काम कर रही है, भाजपा के नेता यदि उसका उल्लंघन करते हैं, तो उनको पार्टी से बाहर निकाल दिया जाता है, किंतु अब आपको एक ऐसा मामला जानना जरुरी है, जिससे साबित होता है कि भारत में वामपंथी विचारधारा ने कैसे संविधान को ताक में रख दिया है, जो सत्ता से लेकर न्यायालय तक पायी जाती है। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि अदालतें किसी मुस्लिम व्यक्ति को तलाक देने से नहीं रोक सकतीं हैं और न ही एक से ज्यादा शादी करने से रोक सकती हैं, क्योंकि यह मुस्लिम कानून या शरीयत के अनुसार एक अधिनियम है। अब इस अदालत के जज को कौन समझाये कि भारत में संविधान का राज है, ना कि शरियत का। खैर, जब आप फैसला देने वाले जज का नाम सुनेंगे तो स्वत: ही समझ जायेंगे कि ऐसा निर्णय क्यों दिया गया है।
केरल हाईकोर्ट के जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की बेंच ने कहा कि अगर तलाक या कोई धार्मिक कृत्य पर्सनल लॉ के अनुसार नहीं किया जाता है, तो एक्ट के बाद इसे कोर्ट ऑफ लॉ में चुनौती दी जा सकती है। हालाँकि, कोई अदालत किसी व्यक्ति को इसे करने से नहीं रोक सकती है। बेंच ने कहा कि ऐसे मामलो में कोर्ट का अधिकार क्षेत्र सीमित है। मुस्लिम पुरुषों को एक समय में एक से अधिक विवाह करने का अधिकार पर्सनल लॉ के तहत निर्धारित है। ऐसा करने से उन्हें कोर्ट नहीं रोक सकती है। बेंच एक मुस्लिम की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें पत्नी को तलाक देने पर फैमिली कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को चुनौती दी गई है। फैमिली कोर्ट ने मुस्लिम पुरुष के दूसरी शादी करने के खिलाफ आवेदन मंजूर किया है। कोर्ट की डबल बेंच ने कहा कि पीड़ित महिला अपनी याचिक दाखिल कर सकती है, लेकिन परिवार अदालत मुस्लिम पुरुष को तलाक देने से और दूसरी शादी करने से नहीं रोक सकती है। कोर्ट ने साफ कहा कि किसी के धार्मिक मामलों में दखलअंदाजी नहीं की जा सकती है, ऐसा करना बिल्कुल गलत होगा।
अब आप समझ सकते हैं कि धार्मिक तुष्टिकरण केवल राजनेता ही नहीं करते हैं, बल्कि अदालतों में भी खूब होता है। पिछले दिनों आपने नुपूर शर्मा के मामले में दो जजों की बेंच की मौखिक टिप्पणी सुनी ही थी, जिसमें जीबी पारदीवाला और सूर्यकांत ने कहा था कि नुपूर शर्मा के कारण ही देश में हिंसा फैली हुई है और सन तन से जुदा करने का कारण भी वही हैं। जजों ने तो यहां तक कह दिया था कि उदयपुर में कन्हैयालाल की गर्दन काटने की दोषी भी नुपूर शर्मा ही हैं, और उनको टीवी पर बिना शर्त माफी मांगनी चाहिये, जबकि उस मामले की ट्राइल भी शुरू नहीं हुई थी। मतलब यह है कि जज भी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर फैसले देते हैं।
इसलिये केंद्र सरकार की भूमिका अहम हो जाती है कि हिंदूओं की रक्षा के लिये और देश में संविधान के तहत कानून की पालना करवाने के लिये जरुरी कदम उठाये। ताकि देश में सभी को समान अधिकारों के साथ रहने का हक मिल सके। इसलिये कहें कि केंद्र की मोदी सरकार हिंदू राष्ट्र की स्थापना के मिशन में जुटी हुई है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं हो सकती है।

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