अशोक गहलोत नहीं छोडेंगे कुर्सी चाहे सरकार गिरे या पार्टी बिखर जाये

Ram Gopal Jat
सचिन पायलट ने अशोक गहलोत सरकार में सेंधमारी शुरू कर दी है। इसी सिलसिले में सचिन पायलट ने गहलोत सरकार में उनके बेहद खास माने जाने वाले मंत्री प्रताप सिंह खाचरिवास से उनके घर पर मुलाकात की है। यह माना जा रहा है कि सचिन पायलट ने सोनिया गांधी के निर्देश पर यह मुलाकात की है और उनका संदेश दिया है कि आने वाले दिनों में वही पार्टी के सर्वेसर्वा होंगे। इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन खुद खाचरिवास ने कहा है कि पायलट उनके घर आये हैं तो सभी तरह की बातें हुई हैं, लेकिन वह मीडिया को नहीं बतायेंगे। इसका मतलब यह माना जा रहा है कि सचिन पायलट इस बार बेहद सधे हुये कदमों से आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
पांच दिन से अधिक गुजर चुके हैं, लेकिन अभी तक भी कांग्रेस अध्यक्ष ने राजस्थान के मुख्यमंत्री को लेकर फैसला नहीं लिया है। तीन दिन तक दिल्ली रहने के बाद सचिन पायलट भी जयपुर लौटे और मंगलवार को वापस भी चले गये। दूसरी तरफ गहलोत कैंप के विधायकों और मंत्रियों ने केसी वेणुगोपाल के आदेश के बाद सार्वजनिक बयानबाजी बंद कर दी है, लेकिन खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब भी बयानबाजी करके खुद का पलडा मजबूत करने का आखिरी प्रयास कर रहे हैं। राजस्थान में 7 से 8 त​क इंवेस्ट समिट होने जा रही है, तो दूसरी ओर गहलोत ने बजट को लेकर विधायकों, मंत्रियों से राय मांग ली है। इससे ऐसा लग रहा है कि गहलोत कुर्सी छोड़ने से पहले एक मिनि बजट पेश करना चाह रहे हैं, क्योंकि बजट पेश करने में कम से कम चार महीने का समय बाकी है, लेकिन अशोक गहलोत पुराने बजट की घोषणाओं के साथ नये बजट की तैयारी भी शुरू करने लगे हैं, जो बड़े राजनीतिक घटनाक्रम की तरफ इशारा कर रहा है।
अशोक गहलोत लगातार तीन दिन से मीडिया को बयान देकर महोल अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि सोनिया गांधी के द्वारा मीडिया में किसी भी तरह का राजनीतिक बयान नहीं देने की हिदायत से भी अशोक गहलोत को कोई असर नहीं पड़ रहा है। इंवेस्ट समिट से पहले अपने निवास पर पत्रकार वार्ता के दौरान अशोक गहलोत ने फिर दावा किया कि वह मीडिया फ्रेंडली हैं और राजनीति में जो होता है, वो दिखता नहीं है, जबकि जो दिखता है, वो होता नहीं है। गहलोत का यह जुमला अब राजस्थान के बच्चे बच्चे की जुबान पर याद हो चुका है। गहलोत इस जुमले को एक साल में याद नहीं कितनी बार दोहराते हैं, खासकर जब से पायलट गहलोत के बीच सियासी जंग चल रही है, तब से इस जुमले को इतनी बार बोला गया है कि अब तो राजस्थान का बच्चे बच्चे को याद हो गया है।
अशोक गहलोत के कई बयान विरोधाभाषी नजर आते हैं, लेकिन एक बात तय है कि गहलोत जो मैसेज आलाकमान तक या सचिन पायलट कैंप तक पहुंचाना चाहते हैं, वह मीडिया में इशारों ही इशारों में बोलकर पहुंचा देते हैं। गहलोत ने कहा है कि वह राजस्थान की, जोधपुर की सेवा करते रहेंगे, चाहे कहीं भी रहे, लेकिन दूसरे दिन उन्होंने खुद ही इस बयान को अगल ढंग से परिभाषित कर दिया है। इससे साफ हो जाता है कि वह ना तो अपने बयानों पर टिकना चाहते हैं और ना ही आलाकमान के आदेश की अधिक परवाह करते हैं, जो सबको चुप रहने की हिदायत दे चुका है।
अशोक गहलोत ने बहुत साफ कर दिया है कि जिसके साथ विधायक हैं, वही मुख्यमंत्री रहेगा, चाहे आलाकमान चाहें या नहीं चाहें। आलाकमान के कहने पर राजस्थान पहुंचे मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को अशोक गहलोत कैंप पहले ही ठेंगा दिखा चुका है। अब वही मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के मुखिया बनने जा रहे हैं, तो सवाल यह भी उठता है कि क्या अशोक गहलोत उनके कहे अनुसार चलेंगे। पिछले दिनों के घटनाक्रम और उसके बाद अशोक गहलोत के बयानों साफ हो जाता है कि वह खड़गे समेत अजय माकन की भी परवाह नहीं करते हैं। आप देख रहे होंगे कि कैसे अशोक गहलोत लगातार सचिन पायलट कैंप पर हमलवार हैं। नाम नहीं लेकर भी गहलोत ने सचिन पायलट के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। ऐसा लगता है कि गहलेात को सोनिया गांधी ने कुछ समय में अपना बिखरा काम समेटकर इस्तीफा देने को कहा है।
इस बीच सचिन पायलट की जयपुर में सक्रियता ने अशोक गहलोत कैंप की हवाइयां उड़ा दी हैं। सचिन पायलट एक दिन पहले ही दिल्ली से जयपुर पहुंचे और उसके बाद मंगलवार को जयपुर में कुछ नेताओं से मुलाकातें कर वापस दिल्ली लौट गये हैं। किंतु इस दौरान सचिन पायलट ने गहलोत के खास माने जाने वाले मंत्री प्रताप सिंह खाचरिवास से उनके घर पर जाकर मुलाकात करना सबसे अधिक चर्चा में रहा है। लोग यह मान रहे हैं कि सचिन पायलट गहलोत कैंप में सीधी सेंधमारी कर रहे हैं। सचिन पायलट ने फ्रेंडशिप डिप्लोमेसी को अंजाम दिया है, जिसका सीधा अर्थ यह है कि अब सचिन पायलट अपने दुमशन को प्रेम के रिश्ते से छकाना चाहते हैं। अशोक गहलोत सरकार के प्रवक्ता बने हुये प्रताप सिंह से सचिन पायलट का मिलना इस बात का पक्का सबूत है कि दिल्ली में कुछ ऐसा पक रहा है, जो पायलट को गहलोत सरकार के मंत्रियों को उनके पक्ष में करने के लिये माहौल बनाने को मजबूर कर रहा है।
इससे पहले सचिन पायलट जब 22 सितंबर को जयपुर पहुंचे थे, तब भी उन्होंने विधानसभा के भीतर और बाहर गहलोत सरकार के कई मंत्रियों और कांग्रेस विधायकों से बात मिलकर बात की थी। कई विधायक सचिन पायलट से मिलने उनके निवास पर भी गये थे। हालांकि, 25 तारीख को अशोक गहलोत कैंप ने इस्तीफों का ड्रामा करके बवंडर खड़ा कर दिया था। अब सचिन पायलट ने नये सिरे से कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों से मुलाकात करके कडवाहट को अपनी तरफ से आगे बढ़कर मिटाने का प्रयास किया है। असल में सचिन पायलट के साल 2014 में अध्यक्ष बनने से लेकर जुलाई 2020 तक प्रताप सिंह खाचरिवास को उनका बेहद करीबी माना जाता था, लेकिन 2020 में यातायात घोटाले के छींटे खाचरिवास के दामन तक पहुंच गये। कहा जाता है कि तभी से प्रताप सिंह ने खुद को बचाने के लिये सचिन पायलट का साथ छोड़कर गहलोत कैंप में एंट्री कर ली थी। तभी से पायलट और खाचरिवास के बीच खाई देखी गई, लेकिन अब पायलट के खुद आगे बढ़कर खाचरिवास से मिलने जाना अपने आप में बहुत बड़ा संदेश है।
अब यह देखना सबसे अधिक दिलचस्प होगा कि आखिर सोनिया गांधी क्या फैसला लेती हैं और उसके बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट की तरफ से क्या रियेक्शन दिया जाता है। पिछले दिनों के घटनाक्रम बताते हैं कि अशोक गहलोत अपना धैर्य खो चुके हैं, तो सचिन पायलट ने जो धीरज का परिचय दिया है, वह काबिले तारीफ है। ऐसे में स्पष्ट रुप से यह माना जा रहा है कि यदि सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को कहा तो हो सकता है कि वह कुछ विधायकों को अपने साथ लेकर सरकार गिरा दें। किंतु उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या अशोक गहलोत उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा कोई कदम उठा सकते हैं, जो उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दे? क्या गहलोत इस वक्त पार्टी छोड़ने, पार्टी तोड़ने या किसी दूसरी पार्टी में एंट्री करने का रिस्क उठा सकते हैं? माना जाता है कि अशोक गहलोत की यह आखिरी पारी है, इसके बाद वह ना कभी मुख्यमंत्री बनेंगे, ना मंत्री बनेंगे और ना ही सियासत के किसी उंचे पद पर बैठ सकते हैं। इसलिये अपनी राजनीतिक पारी का अंत वह पार्टी से बाहर होकर नहीं करना चाहेंगे।
इस बीच यह भी देखने बेहद दिलचस्प है कि क्या सचिन पायलट को अब मुख्यमंत्री बनाकर बगावत करने की रिस्क कांग्रेस पार्टी उठाने की हिम्मत रखती है? क्योंकि राहुल गांधी के करीबी और युवा नेताओं में अब सचिन पायलट ही ऐसे नेता बचे हैं, जो पूरे देश में अपना एक जनाधार रखते हैं। सचिन पायलट को यदि सीएम नहीं बनाया गया तो वह पार्टी छोड़ने जैसा बड़ा कदम भी उठा सकते हैं। यही वजह है कि सोनिया गांधी के सामने सबसे बड़ा प्रश्न पायलट को कांग्रेस में बचाये रखना है। वैसे तो यह तय है कि अब अशोक गहलोत और सचिन पायलट जैसी दो तलवार अब कांग्रेस नामक एक मयान में नहीं रह सकती, लेकिन सोनिया गांधी के आदेश और विधायकों की कमी के कारण अशोक गहलोत भी सचिन पायलट का मुख्मयंत्री रुप में स्वीकार कर सकते हैं। और शायद यही वजह है कि सचिन पायलट को सोनिया गांधी ने एक बार फिर से कांग्रेस सरकार के मंत्रियों और विधायकों से खुद आगे बढ़कर राजीनामा करने के निर्देश दिये हैं। यदि अधिक विधायक सचिन पायलट के साथ दिखाई देंगे और सोनिया गांधी को भी उनके पक्ष में फैसला देने में आसानी होगी। माना जा रहा है कि आने वाले कुछ दिनों में कांग्रेस के विधायक दल की बैठक दुबारा बुलाई जा सकती है, जिसमें एक बार फिर सोनिया गांधी के नुमाइदें जयपुर आकर एक लाइन का प्रस्ताव पास कराने का काम कर सकते हैं। शायद यही वजह है कि सचिन पायलट ने मंत्रियों—विधायकों से मिलकर बहुमत अपने पक्ष में करने का प्रयास तेज किया है।

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