विदेश मंत्री जयशंकर ने रूस यूक्रेन युद्ध बंद करवाया?

Ram Gopal Jat
तीन दिन पहले ही अमेरिकी मीडिया ने खबरें चलाई थीं कि रूस यूक्रेन युद्ध में भारत अहम भूमिका निभा सकता है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक अहम खबर में इस बात पर जोर दिया था कि भारत इस वक्त पूरी दुनिया के लिये अकेला निष्पक्ष देश बन चुका है। इस युद्धकाल में अमेरिका व नाटो देशों को जब चारों तरफ घोर अंधेरा दिखाई दे रहा है, तब उन्होंने भारत से उम्मीद के साथ हस्तक्षेप करने की अपील लगाई थी। वैसे तो दुनिया के पांच सबसे ताकतवर देशों में अमेरिका, चीन, जापान, फ्रांस और इटली जैसे देशों को गिना जाता है, लेकिन इनपर किसी ना किसी गुट में शामिल होने का ठप्पा लगा है। यही वजह है कि इन देशों को भी लगता है कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो रूस यूक्रेन युद्ध में इमानदार थर्ड पार्टी की भूमिका निभा सकता है। अमेरिका से लेकर रूस और चीन से जापान भी इस बात को मानते हैं कि इस सदी की इस सबसे भयानक घटना का अंत भारत ही करवा सकता है।
यही वजह है कि भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर की मंगलवार को शुरू हुई रूस यात्रा से पहले ही इस बात का अंदेश लगाया जा रहा था कि भारत के हस्पक्षेप से रूस युद्ध से पीछे हटने को तैयार हो सकता है। इसके बाद बुधवार को ही जयशंकर ने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव समेत पुतिन प्रशासन के आला अधिकारियों से बात की और युद्ध को लेकर भारत का पक्ष रखा। इसके एक दिन बाद ही यह खबर आना कि रूस ने यूक्रेन खेरसॉन खाली करने का निर्णय लिया है, इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि भारत ने अपना काम शुरू कर दिया था। मैंने तीन दिन पहले एक वीडियो में बताया था कि भारत ने यदि रूस यूक्रेन युद्ध समाप्त करवा दिया तो उसको संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट मिल सकती है। साथ ही इस युद्ध को थामकर दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की विभिषिका से बचाने में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों के लिये उनको नोबल शांति पुरस्कार की संभावना प्रबल हो जाती है।
जयशंकर की मास्को यात्रा के बाद अब रूस ने कहा है कि वो यूक्रेन के शहर खेरसॉन से अपनी सेना वापस बुला रहा है। खेरसॉन उन चार यूक्रेनी इलाकों में से एक है, जिस पर रूस ने दो महीने पहले कब्ज़ा कर लिया था। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसे रूस का हिस्सा भी घोषित कर दिया था। ऐसे में यहां से सेना का पीछे हटना पश्चिमी मीडिया जगत द्वारा रूस की बड़ी हार के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है? यहां पर यह समझना जरुरी है कि क्या रूस हार रहा है या उसकी कोई रणनीति है? रूस के इस कदम की सच्चाई को समझने से पहले इस सदी के इस सबसे लंबे युद्ध की पृष्ठभूमि को समझना जरुरी है। युद्ध की शुरुआत इसलिये हुई, क्योंकि यूक्रेन अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो का सदस्य बनना चाहता था, जिसके बाद उसकी सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीधे तौर अमेरिका के हाथ में आ जाती। अमेरिका भी यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाकर अपने पुराने दुश्मन, यानी रूस की सीमाओं तक पहुंचकर उसपर दबाव बनाना चाहता था। अमेरिका की सोच यह रही है कि यदि यूक्रेन नाटो सदस्य बना जायेगा, तो वहां पर यूएस अपना सैनिक बैस बना लेगा, जहां से जब चाहे, तब रूस पर आक्रमण किया जा सकेगा।
इस बात को रूस अच्छे से जानता है कि अमेरिका यूक्रेन के बहाने क्या खेल करना चाहता है। इस वजह से रूस ने यूक्रेन को पहले कई बार समझाया कि वह नाटो सदस्य नहीं बने, लेकिन वह नहीं माना। यूक्रेन को लगता है कि रूस के बजाये उसका हित यूरोप के नाटो गठबंधन में अधिक है। उसको यह भी लगता है कि रूस कभी भी हमला करके उसे अपने में मिलाने जैसा कदम उठा सकता है। क्योंकि व्लादिमिर पुतिन कई बार यूएसएसआर का संकल्प ले चुके हैं। रूस को यह भी पता है कि जिस तरह से नाटो देशों द्वारा यूक्रेन को मदद दी जा रही है, उससे साफ है कि ये देश यूक्रेन के बहाने रूस को ही घेरने का प्लान बना रहे हैं। इस वजह से जब यूक्रेन नाटो सदस्य बनने से पीछे नहीं हटा तो, मजबूरन रूस ने उसपर आक्रमण कर दिया। इसी साल की 24 फरवरी को हमला हमला किया गया था। तब से आठ महीने का समय बीत चुका है, लेकिन युद्ध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। रूसी सेनाएं यूक्रेन के कई शहरों को बुरी तरह से रौंद चुकी हैं।
इस युद्ध में करीब दो लाख सैनिकों के मरने की बात कही जा रही है। पश्चिमी मीडिया लगातार रूस के खिलाफ एक एजेंडे के तहत खबरें प्लान्ड करता है, और उसको दुनिया में बदनाम करने का काम करता है। अमेरिका व ब्रिटिश मीडिया के अनुसार अब तक रूस के एक लाख से अधिक सैनिका मारे जा चुके हैं। हालांकि, रूस इस बात से इनकार करता है। पश्चिमी जगत ने इस दौरान रूस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिये, लेकिन उसके कोई फर्क नहीं पड़ा है। अमेरिका को लगता था कि आर्थिक प्रतिबंध से रूस टूट जायेगा और हार स्वीकार कर लेगा, लेकिन पुतिन की रणनीति पहले से ही अलग रही है। रूस इस युद्ध में यहां तक पहुंच सका है, तो उसका सबसे बड़ा कारण चीन व भारत के साथ उसके मैत्री संबंध काफी बड़ी भूमिका में रहे हैं। इस युद्धकाल के दौरान अमेरिका व नाटो देश कई बार भारत पर दबाव बनाकर यूएन में रूस के खिलाफ वोट कराने का विफल प्रयास कर चुके हैं। साथ ही साम, दाम, दण्ड, भेद के जरिये भारत व रूस का कारोबार बंद करने का दबाव बनाते रहे हैं, लेकिन भारत कभी इनके दबाव में नहीं आया है। यही वजह है कि अमेरिका व नाटो देशों की भारत के इस रवैये से परोक्ष हार हुई है।
अब भारत के हस्तक्षेप के बाद रूस ने एक दिन पहले ही खेरसॉन से अपनी सेनाओं को पीछे हटाने की घोषणा की है। सवाल यह उठता है कि खेरसॉन से पीछे हटना इस युद्ध में रूस के लिये कितना बड़ा झटका है? क्या व्लादिमिर पुतिन यह जंग हारने की तरफ बढ़ रहे हैं? फिलहाल तो यह कहना सही नहीं होगा कि पुतिन इस जंग को हार रहे हैं। युद्ध में कई बार छोटी—मोटी लड़ाइयों को जानबूझकर भी हारा जाता है, जिसे हम रिट्रीट कहते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर केवल कारोबारी सौदा करने ही मास्को नहीं गये होंगे, वह जरुर मोदी का खास संदेश लेकर ही रूस गये होंगे। विदेश नीति के जानकार यह भी कह रहे हैं कि भारत के आग्रह पर रूस एक कदम पीछे हटकर वार्ता के लिये माहौल बनाने का प्रयास कर रहा होगा। यदि ऐसा हुआ तो आने वाले दिनों में भारत के बीच बचाव का परिणाम यूक्रेन की तरफ से भी देखने को मिलेगा।

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