सचिन पायलट 11 जून को पार्टी की घोषणा नहीं करेंगे, आंदोलन से करेंगे चुनावी आगाज

सचिन पायलट की यह तस्वीर बता रही है कि वह जल्द नया मार्ग अपनाने वाले हैं।


राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री और टोंक से कांग्रेस विधायक सचिन पायलट को लेकर 11 जून को नई पार्टी बनाने की अफवाह जोरों पर चल रही है। वास्तव में देखा जाए तो पायलट गहलोत के बीच चल रही जोर आजामाइश के बाद यही प्रतीत भी होता है कि जल्द ही पार्टी बनाकर मैदान में उतरने वाले हैं, किंतु तथ्यात्मक वास्तविकता यह है कि पायलट 11 जून को पार्टी बनाने की घोषणा नहीं करेंगे। 


सभी प्रकार की अफवाहों से दूर पायलट गुट अभी 11 जून को स्व. राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर बड़ा कार्यक्रम करके फिर से अपनी ताकत दिखाने का प्रयास करने में जुटा है। 


दरअसल, 11 जून 2000 को पूर्व केंद्रीय मंत्री और सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट का दौसा में एक सड़क हादसे में निधन हो गया था। बीते 22 साल से सचिन पायलट दौसा में राजेश पायलट का श्रद्धांजली कार्यक्रम करते आ रहे हैं, इस बार भी वहीं होगा। 


इससे पहले 2020 में सचिन पायलट जब 11 जून को श्रद्धांजली कार्यक्रम करने वाले थे, तब कांग्रेस के एक धड़े द्वारा यह अफवाह फैलाई गई थी कि पायलट गुट बगावत करेगा, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बल्कि ठीक एक महीने बाद पायलट अपने साथी विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर में चले गये थे। 

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बीते एक महीने से कांग्रेस के एक धड़े द्वारा,​ जिसको गहलोत कैंप और पायलट विरोधी कहा जाता है, उसके द्वारा यह अफवाह निर्मित की जा रही है कि सचिन पायलट 11 जून को अपनी अलग पार्टी की घोषणा करने जा रहे हैं। इससे पहले 11 अप्रैल को एक दिन का अनशन, 11 मई को अजमेर से जयपुर की पांच दिवसीय यात्रा भी सचिन पायलट कर चुके हैं। शायद यही वजह है कि जब विरोधी खेमा इस तरह की अफवाह को हवा देता है तो लोग सहज ही विश्वास भी कर लेते हैं।


किंतु वास्तविकता यह है कि सचिन पायलट को जब तक कांग्रेस पार्टी बाहर नहीं निकालेगी, तब तक वह अपनी पार्टी नहीं बनाएंगे। जबकि कुछ विरोधी यह भी अफवाह फैलाते हैं कि पायलट जल्द ही भाजपा ज्वाइन करने वाले हैं। सच केवल पायलट खुद जानते हैं, जो अभी पूरी तरह से चुप हैं।


दरअसल, इन दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी विदेश दौरे पर गए हुए हैं, जब तक राहुल गांधी वापस नहीं आते हैं, तब तक सचिन पायलट संभवत: इंतजार करेंगे। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी 12 जून के बाद वापस लौटेंगे। क्योंकि सचिन पायलट अब कोई भी फैसला करने से पहले एक बार राहुल गांधी से मिलना चाहते हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा चाहती हैं कि गहलोत की जगह पायलट को सीएम बनाया जाये।

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जबकि सोनिया गांधी अशोक गहलोत के पक्ष में हैं। राहुल गांधी ऐसे अकेले हैं, जो दोनों के ही पक्ष में नहीं हैं। वो केवल कांग्रेस की सत्ता रिपीट कराने के पक्ष में हैं, यही वजह है कि वह ऐसे व्यक्ति को सीएम बनाना चाहते हैं, जिसके नाम पर सत्ता हासिल की जा सके। क्योंकि 2018 की सत्ता पायलट के नाम पर मिली थी और यदि उनको सीएम बनाया जाता है, तो कांग्रेस की सत्ता रिपीट हो सकती है।


यही वजह है कि राहुल गांधी भी सचिन पायलट को सीएम देखना चाहते हैं, लेकिन अशोक गहलोत की मजबूत पकड़ और खड़गे द्वारा सोनिया गांधी को पूछे बिना निर्णय नहीं कर पाने की कमजोरी के चलते रास्ता नहीं निकल रहा है। 


इधर, सचिन पायलट साफ कर चुके हैं कि जब तक उनकी तीनों मांगों को माना नहीं जायेगा, तब तक वह पीछे हटने वाले नहीं हैं। हकिकत बात यह है कि जो तीन मांग पायलट ने गहलोत के सामने रखी हैं, उनको मानना सरकार के बस की बात नहीं है। खुद गहलोत कह चुके हैं कि तीनों ही मांगों को मानने का मतलब नहीं है, इस तरह की बातें वही कर सकता है, जिसकी बुद्धि का दिवालियापन निकल गया हो। 


इसी पसोपेश में समय निकल रहा है और निकलते समय के साथ ही राज्य में सत्ता रिपीट होने का सपना भी धूमिल होता जा रहा है। गहलोत खुद को केजरीवाल की तरह अथाह विज्ञापनों के जरिए ब्रांड बनाने में लगे हैं। जिस तरह से गहलोत की छवि चमकाने के लिए सरकारी पैसा विज्ञापनों के द्वारा पानी की तरह बहाया जा रहा है, उससे भी सत्ता रिपीट होती दिखाई नहीं दे रही है। 


असल बात यह है कि जब तक सचिन पायलट को आगे नहीं किया जाएगा, तब तक कांग्रेस की सत्ता रिपीट होना नामुनकिन दिख रहा है। आपको याद होगा 2018 में दोनों नेता एक साथ थे, तब भी कांग्रेस को 99 सीटों पर जीत मिली थी, तो अब दोनों अलग हैं, फिर बहुमत कैसे मिल सकता है, जबकि कांग्रेस के कई विधायक ही सरकार की पोल खोलने में लगे हैं। 


अब यह बात साफ हो चुकी है कि गहलोत खेमा इसी कोशिश में लगा है कि पायलट खुद पार्टी छोड़ दें, तो उनको गद्दार करार दिया जा सके। जबकि पायलट तब तक पार्टी नहीं छोड़ेंगे, तब तक उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं की जाएगी। 

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यही वजह है कि गहलोत खेमा बार—बार पायलट द्वारा नई पार्टी बनाने की अफवाहें फैलाता रहता है। इधर, पायलट इस कोशिश में लगेंगे कि यदि उनको सीएम नहीं बनाया जाता है तो मुखर होकर गहलोत सरकार की नाकामियों से बयानबाजी से कांग्रेस को उनपर कार्यवाही करने के लिए मजबूर करेंगे। 


दोनों तरफ अब यही जोर आजमाइश चल रही है। जबकि कांग्रेस का आलाकमान चाहता है कि वर्तमान के हिसाब से दोनों नेता एक साथ रहें और सत्ता रिपीट कराएं। किंतु पायलट को इससे कोई फायदा होगा नहीं और यदि सत्ता रिपीट हो जाती है तो गहलोत कुर्सी छोड़ेंगे नहीं। 


इसलिए 11 जून को सचिन पायलट अपनी पार्टी की घोषणा नहीं करेंगे, बल्कि इस दिन से प्रदेश में बड़े आंदोलन शुरू करने की घोषणा करेंगे, जिसके जरिए वह प्रदेश के चुनावी दौरे आरम्भ करने जा रहे हैं। 

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