भारत के नए संसद भवन में एक भित्ति चित्र लगा है, जिसे 'अखंड भारत' का नक्शा कहा जा रहा है। इसमें गौतम बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी से लेकर पुरुषपुर, सौवीर और उत्तराप्रस्थ जैसे प्राचीन शहर दिखाए गए हैं। वर्तमान में ये शहर नेपाल और पाकिस्तान का हिस्सा हैं।
नए संसद भवन में लगे इस नक्शे पर बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान ने नाराजगी जाहिर की है। पाकिस्तान ने कहा कि भारत का यह कदम उसकी विस्तारवादी सोच को दर्शाता है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने इस नक्शे पर भारत से स्पष्टीकरण मांग लिया। नेपाल की राजधानी काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने इसके विरोध में अपने ऑफिस में ग्रेटर नेपाल का मैप लगाया है, जो कभी था ही नहीं।
इस नये मैप में पाकिस्तान, श्रीलंका, बंग्लादेश, म्यांमार, अफगानिस्तान का कुछ हिस्सा शामिल है। भारत सरकार का इस मामले बिलकुल स्पष्ट मत है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विवाद होने पर साफ कहा है कि ये सिर्फ एक सांस्कृतिक नक्शा है, जो असल में सम्राट अशोक के साम्राज्य को दिखाता है। ये नक्शा राजनीतिक मैप नहीं है। भारत सरकार ने इस मैप को भले ही सांस्कृतिक नक्शा बताया हो, किंतु अखंड भारत का कॉन्सेप्ट हमारे यहां विभिन्न कारणों से हमेशा चर्चा में रहता है।
मोदी सरकार बनाने जा रही है भारत का अखंड भारत।
अब प्रश्न यह उठता है कि अखंड भारत का कॉन्सेप्ट क्या है? दरअसल, जब अखंड भारत की बात आती है, तो चार तरह की बातें सुनने को मिलती हैं। पहली बात में भारत के साथ पाकिस्तान और चीन अधिकृत कश्मीर शामिल है। दूसरी बात में साल 1947 के बंटवारे के पहले का भारत, जिसमें भारत, पाकिस्तान और बंग्लादेश शामिल होते हैं। इसी तरह से तीसरा कॉन्सेप्ट में भारत के साथ अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, बंग्लादेश और श्रीलंका शामिल होते हैं। इसके अलावा चौथे कॉन्सेप्ट में भारत के साथ ही अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, बंग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, इंडोनिशिया और ईरान भी शामिल हैं।
अखंड भारत के कॉन्सेप्ट को लेकर भी तरह—तरह की बातें होती रही हैं, किंतु प्रश्न यह उठता है कि अखंड भारत का यह कॉन्सेप्ट आया कहां से और इसको इतने बरसों से कौन आगे बढ़ा रहा है? हिंदू धार्मिक मान्यताओं में पूजा पाठ के दौरान एक मंत्र बोला जाता है, जिसको जम्बूद्वीपे भारखण्डे आर्याव्रत देशांतर्गते....से शुरू होता है। इस मंत्र में जम्बूद्वीपे को पृथ्वी के 7 द्वीपों, जिसमें जम्बू, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रौंच, शाक और पुष्कर शामिल हैं, जो इन्हीं सात द्वीपों के बीच में स्थिति है। जम्बूद्वीपे को अखंड भारत की तरह बताया जाता है।
साल 1941 में भंडास्कर रिसर्च इंस्टीट्यूट से पंडित पांडुरंग वामन की एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी। जिसमें लिखा है कि भारतवर्ष के अंदर कई सारे देश आते हैं और भारतवर्ष जम्बूद्वीप के अंदर है।
इतिहास के हिसाब से बात करें तो इतिहासकार दिनेशचंद्र सरकार ने अपनी पुस्तक 'स्टडी इन द जियोग्राफी ओफ एनशंट एंड मिडिवल इंडिया' में दावा किया है कि भारतवर्ष की सबसे पुरानी सभ्यता की निशानी सिंधु घाटी सभ्यता में मिली है। ये पुरातात्विक साक्ष्य करीब 8000 साल पुराने बताए जा रहे हैं, जबकि वैदिक काल 3500 से 5000 साल पुराना माना जाता है। ऐसे में उन्होंने भारतवर्ष की स्थापना को वैदिक काल से पुराना बताया है। हालांकि, बाद में अखंड भारत कई गणराज्यों में बिखर गया था।
321 ईसा पूर्व बिखरे हुए गणराज्यों को मिलाकर फिर अखंड भारत को संगठित किया गया था। आचार्य चाण्क्य के मार्गदर्शन में सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने ऐसा किया था। चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में हुआ था, जो आज बिहार का हिस्सा है। स्वतंत्र राज्यों को एकजुट करने में चंद्रगुप्त ने अहम भूमिका निभाई थी। 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य नंद साम्राज्य को हराकर इस पर कब्जा जमाने में सफल हुए। फिर चंद्रगुप्त मौर्य ने सिंकदर के कब्जे वाले क्षेत्रों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस और चंद्रगुप्त के बीच लड़ाई हुई, जिसमें चंद्रगुप्त की जीत हुई।
इसके बाद चंद्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस से कुटनीतिक संधि के लिये उसकी बेटी हेलन से शादी कर ली। राधा कुमुद मुखर्जी की पुस्तक 'चंद्रगुप्त मौर्य एंड हिज टाइम' में इसका जिक्र है कि चंद्रगुप्त के बाद उनके बेटे बिंदुसार और पोते अशोक मौर्य ने पूर्वी तट पर कलिंग और दक्षिणी तट पर तमिल राज्य पर भी कब्जा कर लिया था। इस तरह से मौर्य साम्राज्य पश्चिम में फारस, यानी ईरान से पूर्व में बंगाल तक, उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कर्नाटक और तमिल तक फैला हुआ था। इसको ही अखंड भारत कहते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि जब इतना विशाल और शक्तिशाली था तो अखंड भारत खंड—खंड कैसे हुआ? दरअसल, 185 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया। इसके बाद अखंड भारत पूरी तरह से बिखर गया। फिर शांग, किन, शक, सातवाहन, कुषाण और दक्षिण में भारत के चोल, चेर और पांड्य जैसे कई साम्राज्य बने। कभी अखंड भारत में चोल और पांड्य साम्राज्य का हिस्सा रहा श्रीलंका साल 1310 के बाद आजाद हो गया। कुछ समय बाद ब्रिटेन ने श्रीलंका पर कब्जा किया, लेकिन उसे अलग देश मानता रहा।
इसी तरह से 870 ई. में अफगानिस्तान पर अरब सेनापति याकूब एलेस ने कब्जा कर लिया। इसके बाद मुगलों और अंत में ब्रिटेन का कब्जा हो गया था। 26 मई 1876 को रूस और ब्रिटेन के बीच गंडमक संधि हुई, जिसें अफगानिस्तान बफर स्टेट बन गया, जो 18 अगस्त 1919 को ब्रिटेन से आजाद हुआ। इससे आगे बढ़कर ब्रिटेन ने 1907 में भूटान को अखंड भारत से अलग कर वहां उग्येन वांगचुक के नेतृत्व में राजशाही की स्थापना की। फिर 1937 में ब्रह्मदेश, यानी बर्मा भी भारत से अलग हो गया।
अबतक आप अखंड भारत का प्राचीन कॉन्सेप्ट समझ रहे थे, अब आप अखंड भारत का मॉर्डन कॉन्सेप्ट समझिये। अंग्रेजी शासनकाल में दो बार आजीवन कारावास की सजा पाने वाले वीर सावरकर साल 1924 में 11 साल बाद अंडमान निकोबार की जेल से बाहर आए। इसके बाद उन्होंने अपनी पुस्तक 'माय ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ' में अखंड भारत का जिक्र किया है। आरएसएस के अखंड भारत के विचार के जनक वीर सावरकर ही माने जाते हैं।
साल 1937 में हिंदू महासभा की 19वीं वर्षगांठ पर वीर दामोदर सावरकर ने कहा था, हिंदूस्तान को अखंड भारत रहना चाहिये। इसमें कश्मीर से रामेश्वरम तक, सिंध से असम तक शामिल हैं। सावरकर के इसी अखंड भारत के सपने को बीजेपी और आरएसएस पूरा करना चाहते हैं, जिसमें पाकिस्तान और चीन अधिकृत कश्मीर के अलावा पाकिस्तान का सिंध भी शामिल हैं। साल 1949 को कोलकाता में आरएसएस के सरसंघचालक सदाशिव गोलवलकर ने भी कहा था कि पाकिस्तान एक अनसर्टेन, यानी अनिश्चित देश है। ऐसे में इसे मिलाकर अखंड भारत बनाने का प्रयास करना चाहिये।
ऐसा नहीं है कि आरएसएस केवल बात ही करता है। संघ ने एक नक्शा भी जारी किया है, जिसमें पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका और तिब्बत भी शामिल हैं। संघ इस संयुक्त क्षेत्र को एक राष्ट्र मानता है, जो हिंदू सांस्कृतिक समानताओं के आधार पर बना है। संघ द्वारा संचालित सुरुचि प्रकाशन ने 'पुण्यभूमि भारत' नाम से एक नक्शा निकाला है। इसमें अफगानिसतान को उपगणस्थान, काबुल को कुभा नगर, पेशावर को पुरुषपुर, मुल्तान को मूलस्थान, तिब्बत को त्रिविष्टप, श्रीलंका को सिंघलद्वीप, म्यांमार को ब्रह्मदेश और थाईलैंड को श्यामदेश कहा गया है।
कुछ समय पहले आरएसआर के सर संघचालक मोहन भागवत 15 साल में भारत के अखंड राष्ट्र बनने की कल्पना की। हरिद्वार में उन्होंने प्रवास के दौरान कहा कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है। अगले 15 साल में भारत फिर से अखंड भारत बनेगा और यह सब हम अपनी आंखों से देखेंगे। उन्होंने कहा कि हम अहिंसा की ही बात कहेंगे, पर यह बात हाथों में डंडा लेकर कहेंगे। हमारे में मन में कोई द्वेष, शत्रुता भाव नहीं है, लेकिन दुनिया शक्ति को ही मानती है तो हम क्या करें। भागवत के उस बयान पर भी काफी विवाद हुआ था।
अब भले ही मोदी सरकार नई संसद में लगे अखंड भारत के नक्शे को लेकर सांस्कृतिक मैप बताए, लेकिन असल बात यह है कि कहीं ना कहीं इस मैप में मोदी सरकार की छुपी हुई नीति है, जो उसे संघ और बीजेपी से विरासत में मिली है। अब यह तो समय ही बताएगा कि अखंड भारत का सपना साकार होता है, या केवल चुनावी वादों तक सिमटकर रह जायेगा।
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