भाजपा 20 तो कांग्रेस इन 52 सीटों पर नहीं जीत पाती है

  


राजस्थान में चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं। भाजपा द्वारा कांग्रेस से दो कदम आगे बढ़कर अपनी समितियां को ऐलान किया है। दूसरी तरफ कांग्रेस से चार कदम आगे बढ़ते हुए भाजपा ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर साफ संकेत दे दिया है कि आचार संहिता तक सभी उम्मीदवार तय हो सकते हैं। यानी कर्नाटक में आचार संहिता से पहले उम्मीदवार तय कर कांग्रेस चुनाव जीतने में सफल रही थी, उसको अब भाजपा आजमाने जा रही है। कांग्रेस ने अपने कर्नाटक मॉडल का बखान तो खूब किया, लेकिन फैसला भाजपा ही ले पाई है।


राजस्थान में तो अभी कांग्रेस उन सीटों पर भी अपने उम्मीदवारों का पैनल नहीं बना पाई है, जहां किसी तरह का विवाद होने की संभावना नहीं है। अशोक गहलोत की सरदारपुरा, सचिन पायलट की टोंक, गाविंद सिंह डोटासरा की लक्ष्मणगढ़, सीपी जोशी की नाथद्वारा समेत कुछ मंत्रियों की सीटों पर विवाद की संभावना काफी कम है, लेकिन फिर भी पार्टी अपनी सूची जारी करने से कतरा रही है। 


भाजपा ने भी राजस्थान की लिस्ट नहीं निकाली है, लेकिन माना जा रहा है कि बहुत जल्दी पहली लिस्ट आ सकती है। राजस्थान में जब भाजपा सत्ता में आती है तो जीत का अंतर काफी अधिक होता है, जबकि कांग्रेस सत्ता में होती है तो केवल सरकार चलाने जितनी ही सीटों पर जीत पाती है। 2013 में भाजपा 163 सीटों पर जीती, लेकिन पार्टी फिर भी उन 20 सीटों पर जीत नहीं पाई, जहां भाजपा का जीतना कठिन हो गया है। इन सीटों पर इस बार भी भाजपा की जीत आसान नहीं है, लेकिन भी एक रणनीति बनाकर पार्टी आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है।


भाजपा के लिए नवलगढ़, खेतड़ी, झुंझुनूं, फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़, दांतारामगढ़, खींवसर, कोटपुतली, बस्सी, राजगढ़—लक्ष्मणगढ़, बाड़ी, टोडाभीम, सपोटरा, सिकराय, लालसोट, सरदारपुरा, बाड़मेर, सांचोर, वल्लभनगर और बागीदौरा सीट जीतना बेहद कठिन है। इनमें से कुछ सीटें तो भाजपा के लिए सपने जैसी बन चुकी हैं। हालांकि, इस बार पार्टी इन सीटों को जीतने के लिए खास तैयारी कर रही है, लेकिन वह कितनी कारगर साबित होगी, यह भविष्य बताएगा।


ऐसा नहीं है कि भाजपा ही कुछ सीटों को लेकर परेशान है, बल्कि कांग्रेस तो ज्यादा परेशान है। कारण यह है कि प्रदेश की 52 सीटें पार्टी पिछले चार चुनाव से नहीं जीत पा रही है। इन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार बड़े अंतराल से चुनाव हार जाते हैं। श्रीगंगानगर, अनुपगढ़, भादरा, रतनगढ़, खींवसर, बीकानेर पूर्व, खण्डेला, जयपुर की शाहपुरा, फुलेरा, विद्याधर नगर, मालवीय नगर, सांगानेर, बस्सी, नदबई, महुवा, झालरापाटन, भीलवाड़ा की शाहपुरा और अजमेर उत्तर जैसी 52 सीटों पर कांग्रेस बीते तीन चुनाव से जीत ही नहीं पाई है। इसके कारण कांग्रेस को फिर से इन सीटों पर हार का डर सता रहा है। 


पूर्व के अनुभव से देखा जाए तो राजसथान में दिसंबर के पहले सप्ताह में चुनाव हो जाएगा, क्योंकि साल 2008 में 4 दिसंबर, 2013 में 12 दिसंबर और 2018 में 7 दिसंबर को मतदान हुआ था। टिकट वितरण की पहली सूची जारी करने में कांग्रेस आगे रही है। हालांकि, 2018 में भाजपा ने पांच दिन पहले अपनी पहली लिस्ट जारी की थी। भाजपा की मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पहली लिस्ट आने के बाद अब कयास लगाए जा रहे हैं कि राजस्थान में जल्द सूची आने वाली है। राजस्थान में भाजपा झालरापाटन, चूरू, आमेर जैसी गैर विवादित सीटों पर सबसे पहले उम्मीदवार घोषित कर सकती है। हालांकि, पार्टी ने गुजरात फॉर्मूले का दावा किया है, जिसके तहत करीब 8 दर्जन प्रत्याशी बदले जा सकते हैं और इन्हीं सीटों पर दूसरी या तीसरी सूची जा होगी। 


परिवारवाद और भाई भतीजावाद से मुक्ति का पीएम मोदी ने 15 अगस्त को भी आव्हान किया है। इसलिए माना जा रहा है कि भाजपा के स्थापित माने जाने वाले नेताओं के टिकट कटते हैं तो भी उनके परिवार के लोगों को टिकट मिलने के आसार बेहद कम हैं। हालांकि, भाजपा ने एक परिवार से एक ही टिकट की बात कहकर उन उम्मीदवारों को एक रास्ता दे दिया है जिनके टिकट कटने की संभावना है। ऐसे दावेदारों के परिवार से किसी योग्य व्यक्ति को टिकट दिया जा सकता है।


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