वसुंधरा राजे करेंगी हनुमान बेनीवाल से गठबंधन?



राजस्थान में भाजपा को दो बार पूर्ण बहुमत दिलाकर दोनों बार सीएम बनने वाली वसुंधरा राजे का राजस्थान की सियासत से राजनीतिक कॅरियर समाप्त होता दिखाई दे रहा है। ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने राजस्थान से वसुंधरा राजे को बाहर कर दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि वसुंधरा राजे का राजस्थान जो राजनीतिक घर था, उससे उनको बाहर किया गया है। भाजपा ने पहले लगातार दो बार उनकी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया गया, फिर नेता प्रतिपक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष भी नहीं बनाया। इसके बाद अब चुनाव प्रबंधन समिति और घोषणा पत्र समिति, जिसे प्रदेश संकल्प पत्र समिति कहा गया है, उसका अध्यक्ष भी वसुंधरा या उनकी पसंद के नेता को नहीं बनाकर संगठन ने साफ संकेत दे दिया है कि वसुंधरा राजे या तो आलाकमान के अनुसार चलें, या फिर उनके स्वर्णिम सियासी सफर का अंत हो चुका है।

वीडियो देखें: हनुमान बेनीवाल की वसुंधरा राजे से मुलाकात के क्या मायने हैं?

भाजपा ने गुरुवार को दो समितियों की घोषणा की है, जिनका संयोजक ना तो वसुंधरा राजे को बनाया गया है और ना ही उनके खेमे के किसी नेता को तहरीज दी गई है। यहां तक कि चुनाव प्रबंध जैसी खास स्थान रखने वाली समिति के संयोजक के पद पर भी पार्टी ने पूर्व सांसद और प्रदेश उपाध्यक्ष नारायण पंचारिया को नियुक्ति दी है। इस समिति में सह संयोजक के पद पर ओंकार सिंह लखावत, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, भजनलाल शर्मा, दामोदर अग्रवाल, सीएम मीणा कन्हैयालाल बैरवाल को जगह दी है। इस कमेटी में 21 सदस्यों को स्थान दिया गया है।


दूसरी समिति है प्रदेश संकल्प पत्र समिति। इसका संयोजक जहां केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को बनाया है तो सह संयोजक घनश्याम तिवाड़ी, किरोड़ीलाल मीणा, अल्का सिंह गुर्जर, राव राजेंद्र सिंह, सुभाष महरिया, प्रभुलाल सैनी और राखी राठौड़ को बनाया गया है। इस समिति में 25 सदस्य हैं।


दरअसल, वसुंधरा राजे को 2003 में भाजपा ने अध्यक्ष बनाकर भेजा था। उससे पहले वसुंधरा राजे एक बार विधायक और पांच बार सांसद रह चुकी थींं। साल 2003 के चुनाव में पार्टी को 120 सीटों के साथ पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का अवसर वसुंधरा राजे ने ​ही दिलाया था। उसके बाद वसुंधरा राजे 2008 के चुनाव में सत्ता से बाहर हो गईं, लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा ने 163 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई। तब वसुंधरा राजे दूसरी बार सीएम बनीं, लेकिन 2018 में सचिन पायलट के चेहरे के सामने वसुंधरा राजे फिर सत्ता से बेदखल कर दी गईं, हालांकि, फिर भी सचिन पायलट के बजाए प्रदेश के सीएम अशोक गहलोत ही बने।


अब अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ माहोल बन रहा है, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है, लेकिन भाजपा शायद वसुंधरा राजे पर तीसरी बार दांव नहीं खेलना चाहती है। यही वजह है कि भाजपा ने बार बार मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का दावा किया है। साथ ही समितियों से राजे को बाहर रखकर पार्टी ने साफ कर दिया है कि चुनाव जीतने के बाद वसुंधरा राजे की जगह सीएम के लिए नये चेहरे को तहरीज दी जाएगी।


वसुंधरा राजे ने पार्टी के इस फैसले पर कोई रिएक्शन नहीं दिया है? उनके समर्थकों का मानना है कि वसुंधरा राजे इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं हैं, लेकिन 2017—18 की अमित शाह और वसुंधरा राजे के बीच अध्यक्ष बनाने के शीतयुद्ध का बदला लेने के लिए मोदी—शाह की जोड़ी कुछ भी कर सकती है। इतिहास गवाह है, मोदी—शाह की जोड़ी अपने सियासी दुश्मन को कभी माफ नहीं करती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि वसुंधरा राजे का क्या भविष्य रहने वाला है?


राजस्थान में अब केवल चुनाव कैंपेन कमेटी ही बननी बाकी है, जिसको लेकर माना जा रहा है कि वसुंधरा राजे ही उसकी संयोजक होंगी। इस कमेटी को इसलिए खास माना जाता है, क्योंकि राज्य में पार्टी की ओर से चुनाव प्रचार का जिम्मा इसी कमेटी के पास होता है। चाहे केंद्रीय नेता हों, या राज्य के नेता, सभी इस कमेटी द्वारा तय रोडमैप के अनुसार ही चलते हैं। हालांकि, पीएम और गृहमंत्री के साथ ही पार्टी के अध्यक्ष कहां प्रचार करेंगे, यह काम उनकी टीम ही देखती है। फिर भी प्रचार की पूरी जिम्मेदारी होने के कारण इस कमेटी के कंधों पर बहुत कुछ होता है। 


फिलहाल भाजपा के इसी कदम पर सबकी निगाहें हैं। यदि पार्टी ने वसुंधरा राजे को इस कमेटी जिम्मेदारी भी नहीं दी तो स्पष्ट हो जाएगा कि पार्टी उनको राजस्थान की राजनीति से बाहर निकाल चुकी है। कमेटियां बनाने में भाजपा इस समय कांग्रेस से आगे चल रही है। राज्य की सभी समितियां बन चुकी हैं और इसके साथ ही पार्टी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में टिकटों की पहली सूची जारी कर साफ कर दिया है कि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की हार के बाद अब कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। 


मतदान में अभी 100 दिन से ज्यादा का समय बचा हुआ है, लेकिन भाजपा ने छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से 21 सीटों के टिकट वितरण कर​ दिए हैं। इसी तरह से मध्य प्रदेश की 230 में से 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय कर दिए हैं। दोनों राज्यों में ये वो सूचियां हैं, जहां उम्मीदवारों के चयन में किसी तरह का विरोधाभाष नहीं है। वैसे इस तरह की पहली सूची राजस्थान से भी जारी हो सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया है। राजस्थान को लेकर भी कहा जा रहा है कि पार्टी जल्द ही पहली सूची जारी कर सकती है। 


कांग्रेस कर्नाटक मॉडल पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है, लेकिन भाजपा ने दो राज्यों में उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर बढ़त बना ली है। यदि राजस्थान में भी यह कर पाई तो मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में भाजपा आगे निकल जाएगी। माना जा रहा है कि भाजपा वसुंधरा राजे को साथ लेकर कदम उठाना चाहती है। इसी वजह से यहां की पहली लिस्ट जारी नहीं की है। 


कहते हैं राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या स्थाई दुश्मन नहीं होता है। एक समय ऐसा था जब सचिन पायलट को सीएम बनाने के लिए हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान कर दिया था, लेकिन जब पायलट को सीएम नहीं बनाया गया तो लोकसभा चुनाव में बेनीवाल ने भाजपा से गठबंधन कर लिया था। हालांकि, किसान आंदोलन के दौरान बेनीवाल ने भाजपा ने नाता तोड़ लिया था, लेकिन माना जाता है कि मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज थे। अब एक और अप्रत्याशित घटना सामने आ रही है। भाजपा के दिल्ली सूत्रों ने दावा किया है कि हनुमान बेनीवाल और वसुंधरा राजे के बीच मुलाकात हुई है। 


यह घटना राजनीति के हिसाब से बहुत बड़ी है, क्योंकि 2009 से ही हनुमान बेनीवाल ने वसुंधरा राजे के खिलाफ भाषण देकर अपने राजनीति कॅरियर को पंख लगाए हैं। किंतु जिस तरह से वसुंधरा राजे को भाजपा नजरअंदाज कर रही है, उससे यह भी चर्चा चल रही है कि आने वाले दिनों में वसुंधरा राजे अपनी नई पार्टी बनाकर मैदान में उतर सकती हैं। यह बात सही है कि काफी समय से वसुंधरा राजे भाजपा से नाराज चल रही हैं। पार्टी की प्रदेश इकाई को वसुंधरा राजे खास त्वज्जो नहीं देती हैं, किंतु जब मोदी, शाह या नड्डा को दौरा होता है, तब ही मंच साझा करती हैं। 


यह तो भविष्य के गर्भ में है कि हनुमान बेनीवाल और वसुंधरा राजे के बीच गठबंधन होगा या नहीं, लेकिन इतना पक्का है कि इस खबर से ही भाजपा में हलचल तेज हो गई है। भाजपा ने जब दो कमेटियों की घोषणा की थी, तभी यह कयास शुरू हो गए थे कि संभवत: वसुंधरा राजे कोई बड़ा फैसला कर सकती हैं। हालांकि, अभी तक इस बात पर मुहर नहीं लगी है कि दोनों नेताओं के बीच क्या बात हुई है और आने वाले चुनाव में साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे या नहीं, लेकिन इतना पक्का है कि यदि ऐसा कोई गठबंधन होगा तो निश्चित रूप से भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका साबित हो सकता है। इस गठबंधन से कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को जरूर बड़ा लाभ होगा जो सत्ता के लिए तमाम फ्री घोषणाएं कर रही है।

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