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भाजपा जीती तो किसको मिलेगी मुख्यमंत्री की कुर्सी?



राजस्थान भाजपा इन दिनों परिवर्तन यात्रा निकाल रही है। इसको लेकर पार्टी ने प्रदेश की चारों दिशाओं से यात्राएं शुरू की थीं। यात्रा की जिम्मेदारी किसी एक नेता को नहीं दी गई है, जो पार्टी का साफ मैसेज है कि कोई भी नेता खुद को सीएम का दावेदार या सीएम का चेहरा नहीं मानें, सीएम वही होगा जो चुनाव परिणाम के बाद संसदीय बोर्ड तय करेगा। यानी चुनाव आपस में मिलकर लड़ेंगे, तो ही आगे सीएम बनने की गुंजाइश रहेगी। यदि किसी ने इस दौरान बगावत की या फिर पार्टी को आंख दिखाने का प्रयास किया तो उसका पत्ता कट जाएगा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिरी भाजपा किसको सीएम बनाएगी? यह सब जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि भाजपा के पास आज कौन कौन नेता है, जो सीएम बनने की योग्यता रखता है या उसको पार्टी सीएम बना सकती है? पार्टी के पास आज की तारीख में करीब आधा दर्जन नेता ऐसे हैं, जो सीएम के दावेदार ही नहीं हैं, बल्कि सीएम बनने के योग्य भी हैं। यह बात और है कि चुनाव परिणाम के बाद किसको सीएम बनाया जाता है। भाजपा जिस तरह से फैसले लेती है, उसके हिसाब से सीएम कौन होगा, यह तो कहना फिलहाल काफी कठिन है, लेकिन फिर भी कुछ नेता ऐसे हैं, जिनको सीएम की रेस में सबसे आगे माना जा रहा है। 


इनमें सबसे पहला नाम पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का है, जो दो बार सीएम रह चुकी हैं। राजस्थान के सक्रिय नेताओं में राजनीतिक अनुभव के हिसाब से वसुंधरा राजे सबसे सीनियर नेता भी हैं। वह 1985 से लगातार जीत रही हैं। वसुंधरा अब तक पांच बार सांसद और पांच बार विधायक का चुनाव जीत चुकी हैं। पार्टी में वह प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जैसे पदों पर रह चुकी हैं। केंद्र में मंत्री के अलावा राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रह चुकी हैं। वसुंधरा राजे भाजपा की एकमात्र ऐसी नेता हैं, जिन्होंने 2003 में पार्टी को पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इसके बाद उनकी लीडरशिप में ही भाजपा 2013 में रिकॉर्ड तोड़ 163 सीटों पर जीती थी। हालांकि, 1977 में भैरोंसिंह शेखावत ने 200 में से 151 सीट जिताकर सीएम बने थे। तब भाजपा नहीं थी, बल्कि जनता दल हुआ करती थी, जिसके राजस्थान में नेता भैरोंसिंह शेखावत थे। हालांकि, कुछ समय बाद ही इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। भैरोंसिंह शेखावत राज्य के तीन बार सीएम रहे हैं। 


वसुंधरा राजे का राजनीतिक अनुभव जहां सीएम की रेस में बनाए रखने का सबसे प्लस पॉइंट है, तो यही उनकी कमजोर भी है। पार्टी गुजरात मॉडल के अनुसार काम कर रही है, यानी अनुभव के बजाए युवाओं को आगे लाने का काम कर रही है। यही वजह है कि 70 पार कर चुके नेताओं को आराम देने रास्ता अपनाया गया है। यदि इस नियम को कठोरता से लागू किया गया तो वसुंधरा राजे को टिकट ही नहीं दिया जाएगा। उनकी जगह उनके बेटे दुष्यंत सिंह को आगे किया जा सकता है। इसके अलावा वसुंधरा राजे का नकारात्मक पहलू यह भी है कि उनकी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ 2013 से ही तनातनी बताई जाती है। यही वजह है कि पूर्व सीएम होने के बाद भी भाजपा ने उनको सीएम का चेहरा नहीं बनाया है, बल्कि पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। 


इसी तरह से दूसरा नाम है पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष डॉ. सतीश पूनियां, जिनके नाम को लेकर सीएम की सबसे अधिक चर्चा होती है। सतीश पूनियां के पास संगठन में काम करने का करीब 40 साल का अनुभव है। हालांकि, जीत के मामले में वह पहली बार जीते विधायक हैं। उससे पहले 2013 और 1999 का उपचुनाव हार चुके हैं। किंतु पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद उनकी तीन साल की मेहनत ने उनकी पारी को एक नया आयाम दिया है। आज की बात की जाए तो राज्य में वसुंधरा राजे के बाद अपने दम पर सबसे अधिक भीड़ जुटाने वाले भाजपा नेता बन चुके हैं। इसके साथ ही राज्य की सबसे बड़ी आबादी से आने के कारण भी सतीश पूनियां का दावा काफी मजबूत है। संघ के सबसे प्रिय नेता हैं, जो सबसे मजबूत पक्ष है। किसी जातिवाद का ठप्पा नहीं है, सौम्य और ईमानदार छवि के नेता माने जाते हैं। इसके साथ ही धीर गंभीर होना सतीश पूनियां का बहुत मजबूत पक्ष माना जाता है। नकारात्मक पहलू यह है कि उनको आलाकमान के सामने लॉबिंग करनी नहीं आती है। उनके पास इस तरह का कोई सिस्टम है, जो भाजपा की टॉप लीडरशिप के सामने इनकी बात को प्रस्तुत कर सकें। यदि भाजपा ने राज्य में बदलाव का निर्णय किया है तो उस स्थिति में सीएम के लिए सतीश पूनियां पहले स्थान पर होंगे। 


इस पंक्ति में नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ हैं, जो अपने जीवन में 7 बार लगातार चुनाव जीत चुके हैं। लंबा संसदीय अनुभव है। विधायक से लेकर मंत्री और सीएम के नंबर एक मंत्री से लेकर नेता प्रतिपक्ष का अनुभव होने के कारण राठौड़ का दावा काफी मजबूत है। राजेंद्र राठौड़ भैरोंसिंह शेखावत से लेकर वसुंधरा राजे के साथ काम कर चुके हैं। नकारात्मक पक्ष की बात की जाए तो आरएसएस का विश्वास आजतक भी हासिल नहीं कर पाए हैं। इसके अलावा कभी वसुंधरा के खास थे, फिर सतीश पूनियां के नजदीक आए और अब खुद का गुट बनाने में जुटे हैं। इसलिए संगठन के टॉप नेताओं की नजर में अधिक टिकाउ नहीं लगते हैं। साथ ही उम्र अधिक होना भी उनके रास्ते में रुकावट है। गुजरात मॉडल में उनका भी टिकट कट सकता है। साथ ही भैरोंसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे ही अब तक भाजपा की ओर से सीएम बने हैं। दोनों ही राजपूत समाज से आते हैं। यदि राठौड़ को सीएम बनाया जाता तो केवल राजपूत जाति को प्रमोट करने के आरोप में पार्टी को बड़े पैमाने पर नुकसान होने का डर है। 


इसी कड़ी में डॉ. किरोड़ीलाल मीणा का नाम भी आ रहा है। डॉ. मीणा के पास संगठन में काम करने के साथ ही लोकसभा सांसद, राज्यसभा सांसद और विधायक का चुनाव जीतने का लंबा अनुभव है। बीते चार साल में अकेले आंदोलन करने वाले सबसे बड़े नेता हैं। पार्टी के अलावा अपने स्तर पर अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ पेपर लीक मामले में खूब सक्रिय रहे हैं। पूर्वी राजस्थान में बड़ा देखल रखते हैं और निर्विवाद रूप से मीणा समाज के सबसे बड़े नेता हैं। आरएसएस पृष्ठभूमि से निकले नेता हैं। भाजपा यदि एसटी वर्ग से सीएम बनाने की सोचें तो किरोड़ीलाल मीणा का नंबर आना पक्का है। हालांकि, डॉ. मीणा के नकारात्मक पहलू भी हैं। कभी वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री थे, लेकिन गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान मीणा समाज के पक्ष में मंत्री पद से इस्तीफा देकर बगावत कर दी थी। उसके बाद उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी थी। साल 2008 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता। उस दौरान उनकी पत्नी गोलमा देवी भी विधायक बनीं, जिन्होंने अशोक गहलोत सरकार को समर्थन दिया, जिसके बदले उनको मंत्री बनाया गया था। साल 2013 का चुनाव उन्होंने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा की राष्ट्रीय जनता पार्टी से लड़ा। तब उन्होंने कांग्रेस—भाजपा को जमकर कोसा था। माना जाता था कि किरोड़ी लाल भाजपा को बड़ा नुकसान करेंगे, लेकिन केवल चार विधायक जीत पाए। अगले पांच साल तक विपक्ष में रहे। इसके बाद 9 साल के उपरांत उन्होंने 2018 में भाजपा को दामन थाम लिया। पार्टी ने अप्रैल 2018 में राज्यसभा सांसद बना दिया। उम्र के लिहाज से वह 70 पार कर चुके हैं, जो भी एक नेगेटिव पहलू है। संघ से निकले हुए नेता हैं, लेकिन पार्टी छोड़ने के कारण संघ के हिसाब से अविश्वसनीय हो चुके हैं। 


इसी तरह से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी सीएम का दावेदार माना जा रहा है। ओम बिरला कोटा से सांसद हैं, उससे पहले 2003 और 2013 में विधायक थे। भाजपा सरकार ने 2003 में उनको संसदीय सचिव बनाया था। एक समय वसुंधरा राजे के खास बताए जाते थे, लेकिन बाद में खटपट हो गई। साल 2008 का चुनाव हार गए थे। इसके बाद 2013 का चुनाव 50 हजार वोटों से जीते, लेकिन 2014 के दौरान उनको कोटा से सांसद का चुनाव लड़ाया गया। तब से वह कोटा के सांसद हैं। अभी लोकसभा स्पीकर होने के कारण उनको मोदी शाह का करीबी माना जाता है। अपने शुरुआती जीवन से ही भाजपा में रहे हैं, इसलिए उनकी वफादारी पर कोई सवाल नहीं उठाता है। कहा जाता है कि जब अमित शाह प्रदेश बदर थे, तब ओम बिरला ने ही उनको शरण दी थी, जिसके बदले में ही उनको अनुभव नहीं होने के बाद भी लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया था। नकारात्मक पहलू खास नहीं है। लेकिन बड़ी आबादी से नहीं आते हैं, जबकि जनता के लिहाज से भी बड़ा चेहरा नहीं हैं। भाजपा के अधिकांश नेताओं से जुड़ाव भी कम ही माना जाता है। विधानसभा के करीब 5 महीने बाद लोकसभा चुनाव है, इसलिए इसकी कम ही संभावना है कि लोकसभा स्पीकर के पद से इस्तीफा दिलाकर उनको सीएम बनाया जाएगा। 


गजेंद्र सिंह शेखावत अभी जल शक्ति मंत्री हैं जो पीएम नरेंद्र मोदी का स्पेशल मंत्रालय माना जाता है। मोदी सरकार ने 2024 तक हर घर जल का लक्ष्य लिया हुआ है। इस वजह से गजेंद्र सिंह के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। जोधपुर से लगातार दूसरी बार सांसद हैं। पिछली बार अशोक गहलोत के बेटे को चुनाव हराया था। उस समय माना जाता था कि सरकार खुद ही चुनाव लड़ रही है, इसलिए उस जीत को बड़ी जीत माना गया। हालांकि, यह बात भी सही है कि हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन की वजह से बड़ी जीत हो पाई, अन्यथा रास्ता आसान नहीं था। जोधपुर विवि का चुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले गजेंद्र सिंह को संघ का भी करीबी माना जाता है। नकारात्मक पहलू यह है कि उनके उपर संजीवनी घोटाले में करोड़ों रुपये गबन का आरोप है। उनके ऊपर एसीबी में मुकदमा चल रहा है। कहा जाता है कि वसुंधरा राजे के इशारे पर अशोक गहलोत ने गजेंद्र सिंह को टारगेट कर रखा है। भैरोंसिंह शेखावत का राजस्थान में तीन बार सीएम बन जाना भी गजेंद्र सिंह के लिए रुकावट पैदा करेगा। हालांकि, राजनीति में सब कुछ संभव है, यदि मोदी शाह की इच्छा हो तो किसी को भी बनाया जा सकता है।


बीकानेर से तीन बार सांसद बन चुके केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को लेकर पिछले दिनों पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। इसे लेकर पीएम मोदी को चिट्ठी भी लिखी थी, लेकिन उसके बाद भी अर्जुनराम मेघवाल के कद में कोई अंतर नहीं आया है। सांसद बनने से पहले आईएएस अधिकारी थे। बाद में वीआरएस लेकर राजनीति में आए थे। दलित समाज से सीएम बनाने पर विचार किया जाएगा तो अर्जुनराम मेघवाल अच्छा विकल्प हो सकते हैं। हालांकि, जिस तरह से कैलाश मेघवाल ने आरोप लगाया, उसके बाद आरोप लगाते हुए अशोक गहलोत ने भी जांच कराने का दावा किया था, लेकिन जांच कब होगा और कौन सी सरकार करेगी, यह सब कुछ अभी भविष्य के गर्भ में ही है। अर्जुन राम मेघवाल का माइनस पॉइंट यही है कि उनपर आरोप लगाकर छवि खराब करने का प्रयास किया गया है, जो चयन को लेकर पार्टी को असहज कर सकता है। इसके साथ ही उनकी उम्र भी 70 पर जा चुकी है, जो पार्टी के नियमों बाधा बन सकता है। 


दीया कुमारी का नाम भी वसुंधरा राजे के विकल्प के रूप में लिया जा रहा है। अभी राजसमंद से सांसद हैं और पूर्व में सवाई माधोपुर से विधायक रह चुकी हैं। अपनी होटल को लेकर वसुंधरा राजे से नाराजगी के कारण भी सुर्खियों में रही हैं। सतीश पूनियां की खुलेमन से प्रशंसा करके दीया कुमारी ने संकेत दे दिए हैं कि जो भी व्यक्ति पार्टी के लिए ईमानदारी से काम करता है, उसको सार्वजनिक रूप से साथ देने को तैयार हैं। दीया कुमारी के प्लस पॉइंट जहां उनका आकर्षक व्यक्तिव है, तो साथ ही संगठन के लिए उनकी बढ़ती सक्रियता भी सकारात्मक पहलू बन रहात्र है। हालांकि, राजपरिवार से होने के कारण आमजन में सहज नहीं रह पाती हैं। खुद को भाजपा की रीति नीति में ढालने का प्रयास कर रही हैं, संघ की नजर में वसुंधरा के विकल्प के तौर पर भी खुद को प्रस्तुत कर रही हैं। नकारात्मक पहलू यह है कि लंबा संगठन का अनुभव नहीं है। पार्टी से 2013 में जुड़ी थीं, उससे पहले कभी संगठन में काम नहीं किया। भाषण देने में धाराप्रवाह नहीं हैं, धरातल की जानकारी का भी अभाव है। राजपरिवार से होने के कारण भाजपा की वर्तमान लीडरशिप के लिए दीया कुमारी को सीएम बनाना आसान नहीं होगा। जयपुर में सीट तलाश रही हैं और सरकार बनने पर आकर्षक महिला नेत्री होने के कारण कैबिनेट मंत्री पद मिलना संभव है। 


इसी तरह से आजकल अलवर सांसद बालकनाथ योगी का नाम भी उनके समर्थक सीएम के तौर पर प्रजेंट कर रहे हैं। बालकनाथ 2019 में पहली बार सांसद बने थे। उससे पहले उनका भाजपा की राजनीति से कोई जुड़ाव नहीं था। पार्टी में किसी तरह का अनुभव नहीं है। भगवाधारी होने के कारण हिंदुत्व के प्रतीक हैं, लेकिन सीएम बनने के लिए यही योग्यता काफी नहीं होती है। लोग उनको राजस्थान का योगी आदित्यनाथ के तौर पर देखते हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ सीएम बनने से पहले 6 बार लगातार सांसद का चुनाव जीत चुके थे। इस वजह से बालकनाथ को सीएम बनाने से पहले पार्टी को जनता के सामने ठोस तथ्य रखने होंगे। 


इनके अलावा राज्यवर्धन राठौड़, सीपी जोशी, कैलाश चौधरी जैसे नेताओं के नामों की भी चर्चा होती रहती है, लेकिन मोटे तौर पर देखा जाए तो इनमें से किसी को सीएम बनाना इतना आसान भी नहीं है। पार्टी अभी चुनाव की तैयारी कर रही है, दिसंबर के पहले सप्ताह में चुनाव हैं और फिर परिणाम मे बाद तय होगा कि राजस्थान का अगला सीएम कौन होगा। 

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