Ram Gopal Jat
राजस्थान भजनलाल शर्मा की भाजपा सरकार को बने एक साल पूरा हो गया है। इस अवसर पर यह जानना जरूरी है कि बीजेपी सरकार की परफॉर्मेंस कैसी रही है? पिछले साल दिसंबर में सरकार गठन के तुरंत बाद पहली कैबिनेट बैठक में ही सीएम भजनलाल शर्मा ने पेपर माफिया के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पेपर लीक की जांच एसओजी को सौंप दी। पेपर लीक मामले में एसओजी ने जो काम किया, वो पहले कभी नहीं हुआ। अशोक गहलोत सरकार ने एसआई भर्ती परीक्षा करवाई थी, उसमें से ट्रेनिंग कर रहे 50 से अधिक एसआई को नकल करने के आरोप में एसओजी ने दबौच लिया। इसके आधार पर एसओजी ने भर्ती रद्द करने की अनुशंसा की है, तो मंत्री परिषद के एक कमेटी ने भी भर्ती को रद्द करने की बात कही है।
इसी तरह से राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच ईआरसीपी के जल समझौते को सरकार ने शुरू के 3 महीने में ही एमओयू कर अमलीजामा पहनाने का काम किया। साथ ही हरियाणा के साथ यमुना जल समझौते पर साइन कर शेखावाटी क्षेत्र की 75 साल पुरानी मांग पूरी कर डाली। सरकार ने अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम किया। कई अपराधियों के घरों पर बुलडोजर चले तो क्राइम कंट्रोल करने में मदद मिली।
हालांकि, इसके बाद भी लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को राजस्थान की 11 सीटों से हाथ धोना पड़ा, जो पिछले दो चुनाव से जीत रही थी। किंतु इसके कई अन्य कारण थे, जिनमें किसान आंदोलन, महिला पहलवान आंदोलन, अग्निवीर योजना के खिलाफ उपजे रोष जैसी वजह थीं। लोकसभा चुनाव केंद्र सरकार की नीतियों पर लड़ा जाता है, इसलिए इस चुनाव की जीत या हार का राज्य की भजनलाल सरकार से कोई लेना देना नहीं माना जा सकता।
भजनलाल सरकार की असली परीक्षा पिछले दिनों विधानसभा की 7 सीटों पर हुए उपचुनाव में थी, जिसे सरकार ने 70 फीसदी अंकों के साथ पास कर प्रथम स्थान हासिल किया है। राजस्थान के इतिहास में पहली बार सत्ता पक्ष ने उपचुनाव में इतनी सीटें जीती हैं, अन्यथा कभी सत्ता में रहने वाली पार्टी ने इतनी बड़ी जीत हासिल नहीं की। मजेदार बात यह है कि भाजपा उन जाट बहुल 2 सीटों पर भी जीती, जहां परिसीमन के बाद कभी जीत ही नहीं पाई थी। आज इस वीडियो में इसी बात की पड़ताल करने जा रहा हूं कि भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में आखिर ऐसा चमत्कार हुआ कैसे?
झुंझुनूं विधानसभा सीट की बात की जाए तो यहां पर भाजपा के राजेंद्र भांबू ने कांग्रेस के सांसद बृजेंद्र ओला के बेटे और दिग्गज कांग्रेसी रहे शीशराम ओला के पोते अमित ओला को करीब 42 हजार वोटों से करारी मात दी है। यह जीत इसलिए भी अहम है, क्योंकि भाजपा ने झुंझुनूं में पहली बार इतनी बड़ी जीत हासिल की है। इससे पहले भाजपा इतिहास में दो ही बार जीत पाई थी, लेकिन इतने बड़े अंतराल से नहीं जीती थी। झुंझुनूं सीट 2008 में हुए परिसीमन के बाद लगातार बृजेंद्र ओला के पास थी, वो मई के लोकसभा चुनाव में सांसद बन गये थे, जिसके कारण झुंझुनूं विधानसभा सीट खाली हो गई थी।
जाट बहुल इस सीट पर पहली बार भाजपा के मूलसिंह शेखावत 1996 में जीते थे, उसके बाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुईं सुमित्रा सिंह ने 2003 भगवा दल के लिए अंतिम बार जीती थीं, लेकिन 21 साल से यहां पर बीजेपी खाता नहीं खोल पा रही थी। इस सीट पर सर्वाधिक वोट जाट समाज के मतदाता हैं, जो लोकसभा चुनाव में भाजपा से नाराज थे, जिसके कारण कांग्रेस के बृजेंद्र ओला के सामने भाजपा के शुभकरण चौधरी नजदीकी मुकाबले में करीब 24 हजार वोटों से हार गये थे, लेकिन इस बार जाटों ने भाजपा को जमकर वोट दिया है, जबकि झुंझुनूं को दिग्गज कांग्रेसी रहे शीशराम ओला का गढ़ माना जाता है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बृजेंद्र ओला ने भाजपा के बबलू चौधरी को करीब 28 हजार वोटों से हराया था। इन 28 हजार वोटों के पिछडेपन को दूर कर भाजपा ने 42 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की। इस तरह से देखा जाए तो पार्टी ने एक साल में यहां पर करीब 70 हजार वोटों की बढ़त पाई है।
ठीक इसी तरह से 2008 में परिसीमन के बाद नागौर की खींवसर सीट अस्तित्व में आई थी। उससे पहले यह सीट मूंडवा के नाम से जानी जाती थी। जब से खींवसर विधानसभा सीट बनी थी, तब से यहां पर हमेशा ही हनुमान बेनीवाल जीतते रहे हैं। 2019 के उपचुनाव में उनके भाई नारायण बेनीवाल जीते थे, लेकिन इस बार उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल को उम्मीदवार बनाया गया था, जिन्हें भाजपा के रेवंतराम डांगा ने 13900 वोटों हरा दिया।
रेवंतराम डांगा को हनुमान बेनीवाल ही राजनीति में लाए थे, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले डांगा भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़े थे, तब वो हनुमान बेनीवाल के सामने 2069 वोटों से हार गए थे। यह सीट भी जाट बहुल है और मिर्धा परिवार के राजनीतिक पतन के बाद नागौर जिला हनुमान बेनीवाल का गढ़ बन गया है, लेकिन इस बार कनिका बेनीवाल को हराकर भाजपा जीत गई है।
माना जा रहा है कि खींवसर की जनता ने भाजपा के रेवंतराम डांगा को वोट देकर सरकार के कामकाज पर मुहर लगाई है। इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शेखावाटी और मारवाड़ क्षेत्र की नागौर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं, श्रीगंगानगर, बाड़मेर—जैसलमेर सीटें गंवा दी थीं।
इस उपचुनाव की तीसरी विधानसभा सीट अलवर जिले की रामगढ़ है, जहां पर भाजपा के सुखवंत सिंह ने कांग्रेस के आर्यन जुबेर को 13636 वोटों से मात दी है। यहां पर मुस्लिम काफी संख्या में होने के कारण भाजपा को लगातार दो बार से शिकस्त मिल रही थी। एक साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के जय आहूजा कांग्रेस के जुबेर खान के सामने करीब 60 हजार वोटों से पीछे रह गये थे।
आजाद समाज पार्टी के टिकट पर सुखवंत सिंह ने 74 हजार वोट लेकर दूसरा स्थान हासिल किया था। इस तरह से देखा जाए तो भाजपा ने बीते एक साल में करीब 75 हजार वोटों को अपने पाले में लाने के काम किया है, जो राज्य की भजनलाल सरकार के काम पर पड़े वोट हैं। यह क्षेत्र ईआरसीपी के अंतर्गत मिलने वाले जल समझौते के तहत आता है। माना रहा है कि ईआरसीपी के एमओयू होने के कारण लोगों ने भाजपा को इतना बंपर वोट दिया है।
इसके बाद दौसा विधानसभा सीट पर भी भाजपा ने उपचुनाव में जबरदस्त वापसी की है, जहां पर एक साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार को कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा ने करीब 50 हजार से अधिक वोटों से हराया था, लेकिन इस बार कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा केवल 2300 वोटों से हारे हैं, जो भाजपा में जातिगत भीतरघात होने के कारण मानी जा रही है।
यहां पर भी ईआरसीपी बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन सरकार द्वारा इस मुद्दे को खत्म करने के कारण मतदाताओं ने भाजपा को जमकर वोट दिया है। दौसा में यदि भाजपा के अंदर ही जातिगत विवाद नहीं होता तो यहां पर भी पार्टी आराम से जीत सकती थी। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने इस क्षेत्र की भरतपुर, करौली—धोलपुर, दौसा और टोंक—सवाईमाधोपुर की सीटें गंवा दी थीं।
टोंक जिले की देवली—उनियारा विधानसभा सीट लगातार 2 बार से कांग्रेस जीत रही थी, लेकिन इस बार भाजपा ने यहां पर भी ईआरसीपी को मुद्दा बनाया, जिसका फायदा मिला है और पार्टी के राजेंद्र गुर्जर करीब 41 हजार वोटों से जीत गए। पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा यहां करीब 19 हजार से ज्यादा हार गई थी।
इसका मतलब यह है कि भाजपा ने यहां एक साल के दौरान ही 60 हजार से अधिक वोटों की बढ़त हासिल की है। इस जीत को भी सरकार के अच्छे कामों का परिणाम बताया जा रहा है। इससे पहले भाजपा के राजेंद्र गुर्जर 11 साल पहले करीब 29 हजार वोटों से जीते थे।
इस क्रम में 6ठी विधानसभा सीट चौरासी है, जहां पर लगातार तीसरी बार भारत आदिवासी पार्टी जीती है। यहां पर एक साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में बाप के राजकुमार रोत ने 70 हजार वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार भाजपा केवल 23 हजार वोटों से हारी है, यानी एक साल में भाजपा ने यहां पर अपने वोट बैंक में 57 हजार वोटों की बढ़ोतरी की है।
चुनाव से दो दिन पहले अपनी आखिरी सभा में सीएम भजनलाल शर्मा ने यहां पर विशाल रैली की थी, जिसमें जबरदस्त भीड़ ने बता दिया था कि सरकार के काम से जनता खुश है। हालांकि, यहां के आदिवासी समुदाय के धर्मांतरण होने के कारण भाजपा को इतना वोट नहीं मिला कि जीत हासिल की जा सके, लेकिन जिस तरह से पार्टी ने एक साल में जबरदस्त कमबैक किया है, उससे साफ है कि सरकार ने अच्छा काम किया है।
भाजपा ने पांचवी सीट उदयपुर जिले की सलूंबर जीती है, जो भी आदिवासी इलाका है। यहां पर भाजपा की उम्मीदवार शांता मीणा ने करीब 1285 वोटों से भारत आदिवासी पार्टी के जितेश कटारा को हराया। सलूंबर में शांता मीणा के पति अमृतलाल मीणा के निधन के कारण उपचुनाव हुआ था।
डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और उदयपुर में भारत आदिवासी पार्टी का प्रभाव तेजी से बढ़ता जा रहा है, लेकिन भाजपा की इस जीत ने साबित कर दिया कि लोग अभी भी भाजपा के साथ हैं और सीएम भजनलाल शर्मा की सरकार के कामकाज को वोट दिया गया है।
इस तरह से 7 सीटों पर हुए उपचुनाव में प्रदेश के लोगों ने भाजपा की भजनलाल शर्मा सरकार के काम को लेकर वोट दिया है। जहां पर 5 सीटें जीतकर पार्टी ने इतिहास रच दिया है। प्रदेश में सीएम भजनलाल के चेहरे पर यह पहला बड़ा चुनाव था, जिसमें करीब 70 फीसदी अंक हासिल कर प्रथम श्रेणी से पास हुए हैं।
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