राजस्थान विधानसभा में विपक्ष की चुप्पी: लोकतंत्र के लिए गंभीर सवाल



राजस्थान विधानसभा में तीन बड़े नेताओं का नहीं बोलना गंभीर सवाल खड़े करता है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट विपक्ष में होते जनता के लिए बोलते क्यों नहीं हैं? अशोक गहलोत तीसरी बार विपक्ष में हैं, लेकिन वो सदन में एक शब्द नहीं बोलते। ऐसे लगता है सत्तापक्ष के साथ उनका हमेशा गठबंधन रहता है। ठीक ऐसे ही वसुंधरा राजे भी विपक्ष में रहते कभी नहीं बोलतीं। ये दोनों नेता अलबत्ता तो विधानसभा में जाना ही पसंद नहीं करते, और जब सदन में पहुंचते भी हैं तो हमेशा चुपचाप बैठे रहते हैं। सचिन पायलट भी विधानसभा में जाना कम ही पसंद करते हैं, लेकिन जब भी जाते हैं तो सत्तापक्ष से सवाल नहीं करते। आखिर क्या कारण है कि ये तीनों बड़े नेता सरकार से सवाल नहीं करते? क्या इन नेताओं ने खुद को संविधान, लोकतंत्र और विधानसभा से उपर समझ लिया है, या सत्तापक्ष के साथ नहीं बोलने के लिए इनका अलाइंस रहता है? 

परिचय

राजस्थान की राजनीति में विधानसभा की कार्यवाही हमेशा से सुर्खियों में रही है। लोकतंत्र में सदन को जनता की आवाज़ बुलंद करने का मंच माना जाता है, लेकिन जब विपक्ष के दिग्गज नेता ही मौन धारण कर लें, तो यह गंभीर सवाल खड़ा करता है। हाल ही में राजस्थान विधानसभा के सत्रों में देखा गया कि राज्य के तीन बड़े नेता—पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट—ने सदन में बोलना जरूरी नहीं समझा। यह स्थिति लोकतंत्र और विपक्ष की भूमिका को लेकर चिंता बढ़ाने वाली है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या ये नेता अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं, या फिर इसके पीछे कोई राजनीतिक गणित छिपा हुआ है?


अशोक गहलोत: अनुभवी नेता, लेकिन चुप क्यों?

अशोक गहलोत राजस्थान के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हैं। वे तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिलहाल विपक्ष में हैं। लेकिन यह गौर करने वाली बात है कि उन्होंने इस बार सदन में एक शब्द भी नहीं बोला। यह पहली बार नहीं है, जब वे विपक्ष में रहते हुए खामोश रहे हैं। सवाल यह उठता है कि जब वे सत्ता में होते हैं, तो अपने फैसलों को बचाव करने के लिए मुखर रहते हैं, लेकिन विपक्ष में रहते हुए जनता के मुद्दों पर सवाल क्यों नहीं उठाते? क्या वे सत्तापक्ष के साथ किसी अघोषित गठबंधन में हैं, या फिर विधानसभा में सवाल उठाना उन्हें जरूरी नहीं लगता?


वसुंधरा राजे: विपक्ष की भूमिका से दूर क्यों?

वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और बीजेपी की कद्दावर नेता मानी जाती हैं। लेकिन जब बात विधानसभा में विपक्ष की भूमिका निभाने की आती है, तो उनका रुख भी गहलोत से मिलता-जुलता ही नजर आता है। वे विपक्ष में होते हुए भी कभी सरकार से तीखे सवाल नहीं करतीं। इतना ही नहीं, वे विधानसभा में उपस्थित भी बहुत कम रहती हैं। अगर कभी सदन में जाती भी हैं, तो चुपचाप बैठकर कार्यवाही देखती हैं। सवाल यह है कि एक सशक्त विपक्ष की जिम्मेदारी क्या सिर्फ छोटे नेताओं की होती है? या फिर वसुंधरा राजे ने भी गहलोत की तरह सत्ता पक्ष से एक 'समझौता' कर लिया है?


सचिन पायलट: युवा नेता, लेकिन सवालों से दूरी क्यों?

सचिन पायलट को राजस्थान का युवा और ऊर्जावान नेता माना जाता है। वे कांग्रेस में बदलाव और सुधार की बात करते रहे हैं, लेकिन जब विधानसभा में सरकार से सवाल पूछने की बारी आती है, तो वे भी पीछे हट जाते हैं। पायलट न केवल सदन में कम जाते हैं, बल्कि जब भी जाते हैं, तो सरकार से तीखे सवाल करने की बजाय चुप रहना पसंद करते हैं।

पायलट की चुप्पी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने हाल ही में गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत की थी। ऐसे में, उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे विपक्ष में रहते हुए सरकार से सवाल करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्या यह कांग्रेस में उनके भविष्य को सुरक्षित करने की रणनीति है, या फिर वे भी सत्ता पक्ष से टकराव मोल नहीं लेना चाहते?


क्या विपक्ष की भूमिका खत्म हो रही है?

विधानसभा में विपक्ष का सबसे बड़ा काम सरकार से सवाल करना और जनता के मुद्दों को सदन में उठाना होता है। लेकिन जब विपक्ष के सबसे बड़े नेता ही मौन साध लें, तो लोकतंत्र की सेहत के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।

कुछ संभावित कारण हो सकते हैं:

  1. राजनीतिक समझौते: क्या इन नेताओं के सत्ता पक्ष से कोई अनकहा समझौता है?

  2. भविष्य की रणनीति: क्या ये नेता सरकार से टकराव मोल नहीं लेना चाहते, ताकि भविष्य में सत्ता में आने का मौका बना रहे?

  3. निष्क्रिय विपक्ष: क्या राजस्थान में विपक्ष की भूमिका धीरे-धीरे कमजोर हो रही है?

  4. विधानसभा की अनदेखी: क्या इन नेताओं को लगता है कि विधानसभा में बहस करने का अब कोई महत्व नहीं रह गया है?


जनता को जवाब चाहिए!

अगर विपक्ष के नेता सदन में जनता की बात नहीं उठाएंगे, तो लोकतंत्र का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। यह जनता का अधिकार है कि उनके मुद्दों पर चर्चा हो, सरकार से जवाब मांगा जाए और विपक्ष अपनी भूमिका निभाए।

अब यह जनता को तय करना होगा कि वे ऐसे नेताओं से सवाल पूछें और उनसे जवाब मांगें। क्या आपको लगता है कि अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे और सचिन पायलट ने विपक्ष की जिम्मेदारी को नजरअंदाज किया है? या इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति है?  #राजस्थान_विधानसभा #लोकतंत्र #राजनीति

Post a Comment

Previous Post Next Post