राजस्थान की सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा अब महज एक परीक्षा नहीं रही, बल्कि यह राज्य के बेरोजगार युवाओं की उम्मीदों, सरकार की नाकामी और सिस्टम की विफलता का प्रतीक बन चुकी है। यह परीक्षा एक गंभीर मसला बन चुकी है, जिसे अब केवल दीवारों पर नहीं, बल्कि दिलों पर चिपकाया जा रहा है।
परीक्षा हुई, पेपर लीक हुआ, कुछ गिरफ्तारियां हुईं, और फिर सन्नाटा छा गया। जब युवाओं का गुस्सा फूटा, तब सरकार ने जांच बैठाई। जांच के दौरान कुर्सियां हिलीं, और नेताओं ने बयान दिए, लेकिन अब जब युवाओं का सब्र टूटने को है, तो आरएलपी सांसद हनुमान बेनीवाल ने जयपुर के शहीद स्मारक पर अनिश्चितकालीन आंदोलन का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि वह युवाओं की लड़ाई अंतिम सांस तक लड़ेंगे। हालांकि, इस प्रकार के बयान देने वाले नेताओं की लंबी सूची है, जिनमें से कई अब सांसें तो ले रहे हैं, पर लड़ते नहीं।
बेनीवाल का गुस्सा वाजिब है, और उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारियों और मंत्री केके विश्नोई को भर्ती को रद्द न करने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। सवाल यह है कि दोषी कौन है—क्या सरकार, जो एक साल से भर्ती पर कोई स्पष्ट फैसला नहीं ले पा रही, या वह सिस्टम, जो लीकेज रोकने के बजाय लीकेज ढकने में व्यस्त रहता है?
2021 में हुई सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा में पेपर लीक का मामला सामने आया। राजस्थान पुलिस ने जांच की, कुछ लोगों को पकड़ा और कुछ को छोड़ दिया (यहां भी रिश्वतों के चर्चे हैं)। 2022 और 2023 में इस भर्ती पर पुनर्विचार हुआ, लेकिन फाइलें अफसरों और मंत्रियों के बीच इधर-उधर होती रही। अब 2024 में भी कोई स्पष्ट फैसला नहीं हुआ—न भर्ती रद्द हुई, न पूरी हुई। यह परीक्षा किसी अधूरी प्रेम कहानी की तरह बन चुकी है: न तो पूरी होती है, न भुलाई जा सकती है।
सरकार कहती है, "हम जांच करवा रहे हैं, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा", लेकिन यह वही बयान है जो 2018 की रीट परीक्षा से लेकर 2023 की कांस्टेबल भर्ती तक दिया जाता रहा है। शायद कोई दोषी नहीं पकड़ा गया, क्योंकि सिस्टम को बदलने के बजाय सिर्फ पासवर्ड बदले जाते हैं।
सबसे बड़ा मजाक यह है कि हर भर्ती घोटाले के बाद सरकार एक "सख्त संदेश" देने का दावा करती है, लेकिन वह संदेश इतना मुलायम होता है कि अपराधी आराम से अपने काम करते रहते हैं। पुलिस भर्ती में यदि अपराधी परीक्षा पास कर रहे हैं, तो भविष्य में वे ही सिपाही बन जाएंगे। यही हो रहा है।
अब यदि युवा आंदोलन करते हैं, तो क्या उनका गुनाह है? जब नौकरी नहीं मिल रही, भर्ती में नकल हो रही है, और दोषियों को संरक्षण मिल रहा है, तो आंदोलन नहीं तो और क्या करेंगे?
हनुमान बेनीवाल की एक लाख लोगों की रैली का ऐलान सरकार के लिए एक अलार्म की तरह है, लेकिन राजस्थान की राजनीति में हम जानते हैं: यह अलार्म तब ही सुनाई देता है, जब कुर्सी डगमगाने लगे।
अब सरकार से सवाल है: कब तक यह भर्ती लटकती रहेगी? नकल माफिया हंसते हुए घूम रहे हैं, और ईमानदार युवा चुपचाप गुस्से के घूंट पी रहे हैं। सरकार एक स्पष्ट निर्णय क्यों नहीं लेती? यदि भर्ती रद्द करनी है तो करें, और यदि नहीं करनी है तो स्पष्ट रूप से बताएं। युवाओं को अनिश्चितता में मत रखें, वे पहले ही बेरोजगारी से हारे हुए हैं, अब उन्हें बेइज्जती का शिकार न बनाएं।
Post a Comment