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जातीय जनगणना: मोदी सरकार की रणनीति या सियासी समीकरणों की नई बिसात?

केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित जातीय जनगणना अब महज़ सामाजिक आंकड़े जुटाने की कवायद नहीं रह गई है, बल्कि यह भारतीय राजनीति के केंद्र में आ चुकी है। जानकारों का मानना है कि इस पहल के पीछे न केवल विपक्ष को घेरने की मंशा है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के भीतर मौजूद जातीय संरचना को उजागर कर उसे धार्मिक एकता से अलग करने की भी रणनीति है।

राहुल और तेजस्वी के एजेंडे पर हमला?  

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जातीय जनगणना का समय किसी संयोग से नहीं चुना गया है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले यह कदम उठाकर सरकार ने सीधा वार राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के एजेंडे पर किया है। ये दोनों नेता लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग कर रहे थे। अब केंद्र ने यह पहल खुद कर ली है, जिससे उनका एक प्रमुख मुद्दा कमजोर पड़ सकता है।

क्या मुस्लिम एकता को तोड़ने की योजना है?  

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक के बाद देशभर में मुस्लिम समाज ने जो एकजुटता दिखाई, उसने सत्तारूढ़ दल को असहज कर दिया। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके रणनीतिकारों ने Caste Census को एक ऐसा औजार माना है, जिससे मुस्लिम समाज को जातियों में विभाजित किया जा सके और उनकी एकता को प्रभावित किया जा सके।

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के महासचिव निराला यादव का कहना है, “यह फैसला लालू यादव और तेजस्वी यादव के दबाव में नहीं, बल्कि उन्हें कमजोर करने की मंशा से लिया गया है।” उनका आरोप है कि चुनावी माहौल में ऐसा कदम उठाकर केंद्र ने साफ कर दिया है कि असली मंशा राजनीतिक ध्रुवीकरण की है।

“जातीय सच्चाई से इनकार समाज को पीछे ले जाएगा” — भाजपा  

बिहार भाजपा के मीडिया प्रभारी दानिश इकबाल ने मुस्लिम समाज में जातिगत ढांचे की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए कहा कि जो लोग इसे नकारते हैं, वे मुस्लिम समाज के सामाजिक विकास को रोकना चाहते हैं।  

दानिश ने कहा कि उन्होंने भारतीय इस्लामी विद्वानों जैसे मौलाना अहमद रजा खान बरेलवी और अशरफ अली थानवी की रचनाओं में जन्म आधारित जातिगत श्रेष्ठता के समर्थन को पढ़ा है। उन्होंने ‘क़फ़ा’ (Kafa) नाम की एक धारणा का उल्लेख किया, जिसका इस्तेमाल उन्होंने विवाह जैसे सामाजिक मुद्दों में जातिगत भेदभाव को जायज़ ठहराने के लिए किया।

शादी-ब्याह में भी दिखता है ऊंच-नीच का अंतर  

दानिश इकबाल ने यह भी कहा कि उच्च जाति के मुस्लिम पुरुष— जैसे सैय्यद, शेख, पठान— निम्न जातियों की महिलाओं से तो विवाह कर सकते हैं, लेकिन इसके विपरीत की स्थिति समाज में स्वीकार नहीं की जाती। उन्होंने इसे कुरान की समता की भावना के खिलाफ बताया और कहा कि कई मुस्लिम विद्वानों ने जातिगत श्रेष्ठता को धार्मिक चोला पहनाने की कोशिश की है, जैसा कि हिंदू समाज में होता आया है।

भारत के मुस्लिम समाज में जातियों का वर्गीकरण  

सामान्य (Upper Caste Muslims)  

- सैय्यद, शेख, रिजवी, खान, मिर्जा, कायस्थ, पठान, भरसैया, भरसो  

पिछड़ा वर्ग (OBC Muslims)  

- अंसारी, सुरजापुरी, मलिक, मदरिया, नालबंद, रायिन, कुरैशी, मंसूरी  

- प्रमुख जातियाँ: मोमिन अंसारी, सुरजापुरी  

अति पिछड़ा वर्ग (Extremely Backward Muslims)  

- मदारी, फकीर, चूड़ीहार, नट, भाट, रंगरेज, सेखदा, कुल्हैया  

दलित मुसलमान (Dalit Muslims)  

- हलालखोर, लालबेगी, धोबी, जोगी, मोची, भिश्ती, बखो  

इन सभी वर्गों के बीच सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक असमानता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। Marriage alliances से लेकर religious leadership तक, हर स्तर पर जातीय भेदभाव की छाया मौजूद है।

राजनीतिक भविष्य: फैसला 2025 में होगा

जातीय जनगणना के नतीजे अब चुनावी राजनीति में क्या बदलाव लाएंगे, इसका फैसला बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में होगा। यदि मुस्लिम समाज इस प्रक्रिया को अपनी एकजुटता को तोड़ने वाला कदम मानता है, तो यह सरकार के लिए उलटा पड़ सकता है। लेकिन यदि जातीय पहचान के आधार पर बिखराव होता है, तो बीजेपी के लिए यह एक बड़ी चुनावी सफलता साबित हो सकती है।

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