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चाहे पायलट सिंधिया बन जाएं पर गहलोत—कमलनाथ की जय होती रहेगी

कांग्रेस के दिग्गज कहे जाने वाले 430 नेताओं का 'नव संकल्प चिंतन शिविर' उदयपुर में झीलों के बीच शनिवार शाम को सम्पन्न हो गया। इसके बाद तकरीबन सभी नेता धीरे—धीरे अपने घरोंधों को लौट गये। हालांकि, कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और राहुल गांधी रविवार को बेणेश्वर धाम में 100 करोड़ की लागत से बनने वाले पुल का उद्घाटन करने के अलावा आदिवासियों के एक सम्मेलन को संबोधित करेंगे, जो दक्षिण राजस्थान में पार्टी की खोई जमीन को तलाशने के तौर पर देखा जा रहा है। इसके बाद रविवार को सोनिया व राहुल भी दिल्ली लौट जाएंगे। इसमें कोई संदेह या शक नहीं कि तीन दिन के इस मंथन का पूरा इंतजाम अशोक गहलोत की सरकार ने किया है। इसे लोकतंत्र में मजाक समझा जाए या जिसकी लाठी उसकी भैंस, पर जिसकी भी सरकार होती है, वहां की सरकार ही राजनीतिक कार्यक्रमों को आयोजित करवाती है। ऐसा केवल कांग्रेस में ही नहीं होता है, अपितु भाजपा समेत सभी दलों द्वारा किया जााता है। इन तीन दिन में मुख्यमंत्री पद से हटने की तमाम चर्चाओं के बीच अशोक गहलोत ने सफल आयोजन कर अपने आलाकमान की नजर में नंबर और बढ़वा लिए हैं, या कहें कि उन्होंने दिसंबर 2023 तक अपनी कुर्सी सुरक्षित कर ली है। कांग्रेस का यह अब तक का यह पांचवा चिं​तन शिविर था, जिसमें से तीन अकेले राजस्थान में आयोजित हुए हैं और तीनों ही अशोक गहलोत के तीनों कार्याकालों में हुए हैं। यह बात और है कि चिंतन शिविर के कुछ माह बाद ही अशोक गहलोत की सत्ता चली जाती है। फिर भी सचिन पायलट के दबाव के बीच उन्होंने कांग्रेस के सबसे बड़े आयोजन को सफल बनाकर दिखा दिया है कि कांग्रेस आलाकमान की नजर में उनकी जादूगरी बरकरार रहेगी, चाहे सचिन पायलट जितने भी दावे कर लें, उनको वह मरते दम तक मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे, चाहे इसके लिए उनको किसी भी हद तक जाना पड़े। इस चिंतन शिविर में कांग्रेस की कितनी चिंता दूर हुई, इसकी चर्चा आगे करेंगे, लेकिन उससे पहले सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने या नहीं बनने की बात करनी जरुरी हो गई है, क्योंकि पिछले दिनों प्रशांत किशोर वाला एपिसोड होने के समय ऐसा लगने लगा था कि अशोक गहलोत की कुर्सी पायलट के पास जाने वाली है। खुद गहलोत ने भी इसका इशारा यह कहकर कर दिया था कि उनका इस्तीफा सोनिया गांधी के पास बीते 24 साल से रखा है, वह चाहेंगी, तब स्वीकार कर लेंगी। उस वक्त सचिन पायलट के बयानों से भी यह लगा था कि शायद आलाकमान ने उनकी पीड़ा दूर करने और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रिपीट कराने की ठान ली है। किंतु इस शिविर के अंदर से निकली बातों से ऐसा लगता है कि चाहे सचिन पायलट भी ज्योतिरोदित्य सिंधिया बन जाएं, लेकिन पार्टी में अशोक गहलोत—कमलनाथ के जयकारे लगते रहने चाहिए। अब सचिन पायलट का अगला कदम क्या होगा? और वह कितना कारगर होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन धीरे धीरे उनके समर्थक भी मानने लगे हैं कि जादूगर इस युवा को मुख्यमंत्री नहीं बनने देगा। पायलट अपने समर्थकों की भावानाओं को कैसे काबू में रखेंगे और उनको क्या आश्वासन देंगे, यह देखना भी काफी दिलचस्प होगा। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में केवल 19 महीने का समय बचा है, जिसमें करीब दो—तीन महीने की आचार संहिता और चुनाव कार्यक्रम भी शामिल है। इसलिए अशोक गहलोत सरकार के लिए काम करने के और सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने के केवल 15 महीने ही बचते हैं। इनमें दोनों पक्षों को अपनी अपनी योजना को अमलीजामा पहनाना होगा, साथ ही विपक्षी दल भाजपा से भी 2023 में चुनावी मुकाबला करने को तैयार भी होना है। यदि अशोक गहलोत तब तक मुख्यमंत्री रहते हैं, तो कांग्रेस का एक गुट तो खुश रहेगा, किंतु यह तय है कि राज्य का मतदाता पूर्व की भांति कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का मन बना चुका है, जिसकी प​रीणिती कांग्रेस पार्टी के लिए एतिहासिक और अभूतपूर्व चुनाव परिणाम के तौर सामने आ सकती है। और अगर कांग्रेस अपनी साढ़े तीन साल पुरानी गलती को सुधारते हुए सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना देती है, तो यह भी तय है कि कांग्रेस दो धड़ों में बंटी रहेगी, क्योंकि फिर भी अशोक गहलोत नहीं चाहेंगे कि सचिन पायलट की लीडरशिप में पार्टी सत्ता में वापस आ जाए। तो सचिन पायलट के लिए केवल मुख्यमंत्री बनना ही चुनौती नहीं है, बल्कि सीएम बनने के बाद सत्ता रिपीट कराना भी उतना ही चुनौती है। हालांकि, उसके बाद पार्टी के लिए थोड़ी राहत की बात हो सकती है, क्योंकि सचिन पायलट को उम्मीद से राजस्थान का मतदाता 2018 में कांग्रेस को वोट दे चुका है। इसलिए सचिन पायलट के पास राजस्थान की जनता से वोट मांगने का एक और बहाना यह हो सकता है कि उनको पार्टी ने आखिरी महीनों में मुख्यमंत्री बनाया, जिसके कारण काम करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला, ऐसे में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाएं और फिर उनका चमत्कार देखें। किंतु यह भी तभी होगा, जब कांग्रेस आलाकमान उस 24 साल पुराने इस्तीफे को स्वीकार कर लेगा, जो अशोक गहलोत ने 1998 के समय सोनिया गांधी के पास गिरवी रख दिया था। इस बीच राजनीतिक चर्चा तो यहां तक है कि अशोक गहलोत ना केवल इस कार्यकाल में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे, बल्कि आखिरी दिनों में यदि उनको पार्टी अध्यक्ष बनाकर सीएम फेस प्रोजेक्ट भी कर दिया, तो सत्ता में रहते इतने गहरे गड्डे खोद जाएंगे कि सचिन पायलट और पूरी कांग्रेस पार्टी उनको भर ही नहीं पाएगी, जिसके कई उदाहरण इस वक्त देखने को मिल रहे हैं। अब बात कांग्रेस के तीन दिवसीय नव संकल्प चिंतन शिविर की। शिविर समाप्त हो गया है और उसके बाद कांग्रेस ने एक शब्द में बताया कि है कि जिसका निष्कर्ष है भारत जोड़ो। अब जनता इसको कैसे समझे, यह तो भारत के 140 करोड़ लोगों के उपर है, लेकिन कांग्रेस ने तय किया है कि अब पार्टी एक परिवार से दो ही लोगों को टिकट देगी, जो शिविर के दूसरे दिन एक टिकट तय हुआ था। शिविर के दूसरे दिन पार्टी ने तय किया कि एक परिवार से एक टिकट दिया जाएगा, लेकिन गांधी परिवार को छोड़कर। मतलब कांग्रेस अपने पांचवे चिंतन शिविर में भी राजशाही अपवाद की जकड़ से बाहर नहीं निकलना चाहती है? हालांकि, उदयपुर की दूसरी रात में कुछ चमत्कार हुए और आखिरी दिन इसमें कुछ परिवर्तन करते हुए एक परिवार एक टिकट की जगह, एक परिवार दो टिकट का फॉर्मूला तय किया गया। मतलब केवल गांधी परिवार तक ही नहीं, अपितु गहलोत परिवार और कमलनाथ परिवार को भी इसमें शामिल किया गया। इसके अलावा इन्हीं परिवारों की योग्यता के अनुसार टिकट की योग्यता में नेता के पांच साल तक पार्टी के किसी पद पर रहने और फिर तीन साल का कूलिंग पीरियड निकालने जैसी योग्यता को भी जोड़ दिया गया। जैसे सोनिया के बेटे—बेटी राहुल—प्रियंका, गहलोत के बेटे वैभव और कमलनाथ के बेटे ने पांच साल संगठन में पदों पर काम कर भी लिया है और उनका तीन साल का कूलिंग पीरियड भी हो चुका है। ऐसे लगता है जैसे रात को होटल में बैठक रात्रि भोज के साथ गहलोत—कमलनाथ ने ही यह फॉर्मूला तय किया हो। इसी तरह से राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि मोदी—शाह, नड्डा—योगी की जोड़ी आने वाले कई बरसों तक कांग्रेस को केंद्रीय सत्ता में नहीं आने देगी, इसलिए लड़ाई लंबी है और इसके लिए बुजुर्ग कांग्रेसियों को जनता के बीच जाकर लड़ना है। खुद राहुुल गांधी ही 2 अक्टूबर से भारत जोड़ो आंदोलन पर देश की यात्रा शुरू करने जा रहे हैं। मतलब यह कि जुलाई में अध्यक्ष बनेंगे और फिर बरसात शुरू होने के साथ ही यात्रा पर निकल पडेंगे। पार्टी ने इस बात का भ्रम भी दूर कर दिया है कि हिंदुओं को जोड़ने के लिए कांग्रेस नेता मस्जिद जाना नहीं छोड़ रहे हैं, बल्कि नेताओं ने यह भी बता दिया है कि राहुल—प्रियंका के मंदिर जाने से वोट कम मिलते हैं। इसलिए सॉफ्ट हिंदुत्व की नौटंकी से दूर रहा जाएगा। राहुल ने स्पष्ट किया है कि पार्टी के अनुभवी नेताओं को कितनी भी अधिक उम्र में मार्गदर्शक मंडल में नहीं भेजा जाएगा, इसका मतलब यह है कि सचिन पायलट चाहें तो 10 या 20 साल इंतजार कर सकते हैं, किंतु अशोक गहलोत को नहीं हटाया जाएगा, उनके अनुभव से पार्टी पहले की तरह ही लाभांवित होती रहेगी। जो जी23 वाले नाराज नेता थे, उनकी एक मांग को छोड़कर सभी मांगों को मान लिया गया है, अब वो लोग भी चुपचाप पार्टी के लिए वैसे ही काम करते रहेंगे, जैसे करते रहे हैं। पार्टी चाहे रहे या नहीं रहे, लेकिन पार्टी अध्यक्ष गांधी परिवार से ही होगा, इसके लिए किसी बाहरी व्यक्ति को सपने नहीं पालने चाहिए। क्योंकि जब राहुल गांधी से अलग सोचने वाले नेताओं का पक्ष सामने आया तो पता चला कि कांग्रेसी प्रियंका वाड्रा पर आकर अटक गये हैं। ऐसे समय में कोई भी नेता कड़वा सच बोलकर सुनील जाखड़ नहीं बनना चाहता है। और अंतत: यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि इस चिंतन शिविर के उपरांत भी भारत का मीडिया भी अपनी चाल नहीं छोडने जा रहा है। तीन दिन से उदयपुर में सैंकड़ों की संख्या में मीडियाकर्मी अपनी ड्यूटी निभा रहे थे और एसी कमरों में बैठकर उनके मालिक आदेशित कर रहे थे कि फंला खबर ही लिखनी है, दिखानी है। साफ संदेश था कि किसी तरह से भी राज्य के मुखिया को चुनावी साल से पहले नाराज करके आने वाले 15 महीनों में मिलने वाले करोड़ों रुपयों के विज्ञापनों का नुकसान नहीं करना है, चाहे कांग्रेस को नुकसान हो या राजस्थान को कितना भी नुकसान हो। इसलिए मीडियाकर्मियों के कैमरे व लेखनी अशोक गहलोत की मिजाजपुर्सी और उनकी मेहमाननवाजी के गुणगान करने में लगी हुई है। कुल मिलाकर बात यह है कि कांग्रेस पार्टी और राज्य कांग्रेस ईकाई की राजनीति तीन दिन पहले थी, वहीं पर आज खड़ी है।

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