किरोड़ीलाल—सतीश पूनियां की अदावत तीन दशक पुरानी है

Ram Gopal Jat
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच दो धड़ों में बंटी कांग्रेस सभी को नजर आती है, लेकिन भाजपा कितने धड़ों में बंटी है, इसका कम ही लोगों को पता है। एक दिन पहले जब राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने अपने ही दल के अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां के खिलाफ बयान दिया तो भाजपा की अंतर्कलह एक बार फिर से खुलकर सामने आ गई। किरोडीलाल मीणा ने सतीश पूनियां पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया है और एक तरह से भाजपा अध्यक्ष के रुप में सतीश पूनियां को निष्प्रभावी करार दे दिया है। किरोडीलाल मीणा का बयान उस वक्त आया है, जब तीन दिन पहले ही सतीश पूनियां ने मीणा के धरने में जाकर उनको समर्थन दिया था। दोनों के बीच क्या बात हुई थी, यह तो वो दोनों ही जानते हैं, लेकिन किरोडीलाल ने आरोप लगाया है कि सतीश पूनियां ने उनको दूसरे ​ही दिन से भाजपा युवा मोर्चा द्वारा प्रदेशभर में उनके समर्थन में प्रदर्शन करने का वादा किया था, जिसको पूरा नहीं किया है, उनको अपना वादा पूरा करना चाहिये था। इसपर प्रतिक्रिया देते हुये सतीश पूनियां ने इतना ही कहा है कि उनको संगठन ने जो दायित्व दे रखा है, उसको निभा रहे हैं, इससे अधिक उनको कुछ कहने की जरुरत नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि जब किरोडीलाल मीणा के धरने में समर्थन देने सतीश पूनियां गये थे, तो फिर ऐसा क्या हुआ कि किरोडीलाल मीणा ने उनके ​ही खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री और वसुंधरा राजे ने एक ट्वीट के अलावा किरोडीलाल मीणा को कोई सम​र्थन नहीं दिया, फिर भी उनके खिलाफ मीणा ने एक शब्द नहीं बोला है। ऐसा क्यों है कि 2018 के चुनाव में सतीश पूनियां को जिताने में सहयोग करने का दावा करने वाले मीणा अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष के खिलाफ बयान देने लगे हैं? ऐसा क्या कारण है कि 12 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किरोडीलाल मीणा के प्रभाव क्षेत्र माने जाने वाले पूर्वी राजस्थान में बड़ी सभा होने जा रही है और उससे ठीक पहले किरोडीलाल मीणा ने सतीश पूनियां के खिलाफ बयान देकर अपनी ही पार्टी को सवालों के घेरे में ले लिया है? सतीश पूनियां के धरने में जाकर समर्थन करने से पहले वसुंधरा खेमे के विधायक और सांसद भी किरोडीलाल मीणा को समर्थन दे चुके हैं, जो एक नये बदलाव की तरफ इशारा कर रहा है। कभी वसुंधरा के धुर विरोधी रहे मीणा का इसके बाद सियासी तौर पर वसुंधरा के करीब होने का भी इशारा मिल रहा है।
इस वीडियो में आपको मैं बताउंगा किरोडीलाल मीणा के गुस्से की असली वजह और यह भी बताउंगा कि सतीश पूनियां और किरोडीलाल मीणा के बीच किस बात की कलह है? साथ ही किरोडीलाल और वसुंधरा राजे के बीच गुपचुप संगठन के बारे में भी बताउंगा, लेकिन उससे पहले आपको यह जानना जरुरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दौसा के मीणा पंच अस्थाई में होने वाली सभा के समय पीएम मोदी के साथ और कौन कौन नेता बैठने वाला है? अभी तक मिली जानकारी के अनुसार मोदी के साथ मंच पर तीन और व्यक्ति बैठने वाले हैं। मोदी के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत होंगे, इसके साथ ही देश के यातायात एवं सड़क परिवहन मंत्री नीतिन गड़करी होंगे और स्थानीय सांसद जसकौर मीणा होंगी। शायद कम ही लोगों को इस बात का पता है कि जसकौर मीणा और करोड़ीलाल मीणा के बीच दौसा क्षेत्र में वर्चस्व की जंग चलती रहती है। जसकौर मीणा को जब 2019 में दौसा से सांसद का टिकट दिया गया था, तब भी करोड़ीलाल मीणा ने विरोध किया था। यह भी कहा जाता है कि जसकौर को हराने के लिये किरोडीलाल ने अपनी टीम लगा दी थी, लेकिन मोदी लहर में मीणा की टीम बैअसर साबित हुई। हालांकि, जसकौर भी भाजपा की ही लोकसभा सांसद हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर एक ही दल के कई नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग चलती रहती है।
युवाओं के लिहाज से किरोडीलाल मीणा आज पूर्व राजस्थान में सचिन पायलट की तरह काफी पोपुलर हैं, लेकिन चुनाव जीतना दूसरी बात होती है। साल 2006 में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से विवाद के बाद मंत्री पद और पार्टी छोड़ने वाले किरोडीलाल मीणा ने अपनी पार्टी के चिन्ह पर 2013 में प्रदेश की कई सीटों पर चुनाव लड़कर दावा किया था कि वह किंगमैकर होंगे, लेकिन खुद समेत केवल चार सीट ही जीत पाये। इसके बाद वह पांच साल तक भाजपा के खिलाफ सदन और सड़क पर मोर्चा खोलते रहे, लेकिन अंत समय में उन्होंने वसुंधरा की अगुवाई में ही भाजपा का दामन थाम लिया और राज्यसभा में सांसद बना दिये गये। कहा जाता है कि तभी से वह वसुंधरा राजे के कैंप के नेता बने हुये हैं। इसका पुख्ता सबूत यह है कि चार साल से राजनीतिक परिदृश्य से पूरी तरह नदारद रहने के बाद भी किरोडीलाल मीणा ने वसुधंरा राजे के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोला है, जबकि धरने में समर्थन करने वाले सतीश पूनियां पर आरोप लगा दिये हैं।
वसुंधरा राजे और सतीश पूनियां के बीच वैसे तो सीधे तौर पर कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि वसुंधरा राजे ने 2003 में सतीश पूनियां को टिकट नहीं दिया था। बाद में 2008 के चुनाव में भी ऐसी जगह से टिकट दिया, जहां से वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, जिसको उन्होंने वापस लौटा दिया। तीसरी बार 2013 में उनको संगठन ने आमेर सीट से टिकट दिया, लेकिन किरोडीलाल मीणा ने नवीन पिलानिया को टिकट देकर सामने कर दिया, जिसमें सतीश पूनिया 400 से भी कम वोटों के साथ काफी कम अंतर से चुनाव हार गये। इस चुनाव में किरोडीलाल मीणा अपने उम्मीदवार नवीन पिलानिया के लिये प्रचार किया तो यह भी कहा जाता है कि वसुंधरा राजे की टीम ने सतीश पूनियां के खिलाफ प्रचार किया था। चार साल पहले 2018 में किरोडीलाल मीणा ने खुद रैलियों में कहा था कि उनकी गलती हो गई, जो 2013 में सतीश पूनियां के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया, जिसकी वजह से वह चुनाव हार गये।
कहा जाता है कि उससे पहले 90 के दशक में जब सतीश पूनियां राजस्थान विवि के महासचिव थे और अगले साल अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे थे, तब भी किरोडीलाल मीणा ने उनके खिलाफ प्रचार किया था, जिसके कारण वह चुनाव नहीं जीत पाये थे। तीन साल पहले सतीश पूनियां पार्टी अध्यक्ष बने तो किरोडीलाल मीणा ने अपने लोगों को संगठन में जगह दिलाने के लिये नाम भेजे, जिनमें से बहुत कम लोगों को जगह मिली, जिसके कारण तो दूसरे थे, लेकिन किरोडीलाल मीणा ने सतीश पूनियां को ही दोषी मानते हुये नाराजगी जताई। कहा जाता है कि तभी से दोनों नेताओं के बीच शीतयुद्ध चल रहा है, जो कभी हल्का, कभी भारी हो जाता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में किरोडीलाल मीणा भी मंच पर बैठना चाहते थे, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रोटोकॉल के तहत इसकी इजाजत नहीं दी, जिसको लेकर भी किरोडीलाल मीणा ने पीएमाओ में नाराजगी जताई है। कहा जाता है कि किरोडीलाल मीणा इसके लिये भी सतीश पूनियां को ही दोषी मानते हैं। जबकि खुद अध्यक्ष होने के बावजूद डॉ. सतीश पूनियां भी मंच पर नहीं बैठ सकते।
अब युवाओं के साथ प्रदर्शन करने के दौरान युवा मोर्चा का धरना नहीं होने के बहाने किरोडीलाल मीणा ने सतीश पूनियां पर बयानबाजी करके जहां वसुंधरा खेमे को खुश करने का काम किया है, तो साथ ही आलाकमान को भी अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है कि यदि उनकी अनदेखी की गई तो आने वाले समय में वह बगावत भी कर सकते हैं, तो भाजपा को काफी भारी पड़ सकती है। वैसे भी कांग्रेस जहां सचिन पायलट की अनदेखी कर रही है, तो भाजपा भी किरोडीलाल मीणा की अनदेखी कर रही है, जबकि हनुमान बेनीवाल दोनों नेताओं को अपने साथ लेकर भाजपा—कांग्रेस को हराने का आव्हान कर चुके हैं। यह बात तो आने वाले दिनों के साफ होगी कि दोनों नेता बेनीवाल के साथ जाते हैं या नहीं, लेकिन आप इस बारे में क्या राय रखते हैं कि किरोडीलाल मीणा की अनदेखी से भाजपा को कितना नुकसान हो सकता है? अपनी राय कमेंट बॉक्स में लिखकर बतायें।

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