ईआरसीपी के मुद्दे पर बदलेगी 13 जिलों में वोटों की गणित?



चुनाव की तारीख का ऐलान हो गया है, प्रदेश में आचार संहिता लगने के बाद भाजपा ने पहली सूची जारी कर दी है। नई सरकार को दिसंबर के पहले हफ्ते में शपथ दिला दी जाएगी। इस दौरान आचार संहिता के समय ही सियासी दल अपने उम्मीदवार भी घोषित करेंगे और 23 नवंबर को मतदान के बाद 3 दिसंबर को परिणाम भी जारी करने का काम चुनाव आयोग द्वारा किया जाएगा। कुल मिलाकर राजस्थान को नई सरकार मिलने में केवल 40 दिन बचे हैं। पिछली बार 7 दिसंबर को मतदान हुआ था, उसके बाद 10 दिसंबर को परिणाम घोषित किया गया और 17 दिसंबर को अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने शपथ ले ली थी। इस बार चुनाव 23 को, परिणाम 3 को आएगा और यदि किसी तरह की खींचतान नहीं हुई तो पहले सप्ताह में ही राजस्थान को नया सीएम मिल जाएगा। हालांकि, सरकार का कार्यकाल 14 जनवरी तक है, लेकिन उससे पहले पहले नई सरकार को चुनना जरूरी होता है। चुनाव आयोग की तैयारी पूरी है और सियासी दल अपने उम्मीदवारों के नामों पर मंथन कर रहे हैं। श्राद्ध पक्ष चल रहा है, जिसमें कोई भी दल शुभ काम करने से बचने का प्रयास करता है। माना जा रहा है कि नवरात्रों में सभी राजनीतिक दलों की सूचियां आ जाएंगी।


भाजपा जहां पांच साल बाद सत्ता में आने का दम भर रही है, तो अशोक गहलोत और कांग्रेस ने सत्ता रिपीट कराने का दावा किया है। हालांकि, जितना प्रचार भाजपा कर रही है, उतना जोर कांग्रेस की टॉप लीडरशिप का दिखाई नहीं दे रहा है। भाजपा के प्रचार को आप इससे समझ सकते हैं कि पिछले एक साल में पीएम मोदी अब तक राजस्थान 11 बार सभाएं कर चुके हैं। औसत के तौर पर देखा जाए तो हर 33 दिन में मोदी राजस्थान पहुंच रहे हैं। नई सरकार बनाने के लिए भाजपा के पास जहां राजस्थान की लचर कानून व्यवस्था, किसान कर्जमाफी का झूठा वादा, सरकार में गुटबाजी, भयानक भ्रष्टाचार, पेपर लीक, महिला अत्याचार, दलितों के खिलाफ बढ़ते अपराध, सरकार द्वारा धर्म के आधार पर तुष्टिकरण करना और केवल वोट पाने के लिए फ्री योजनाएं चलाकर प्रदेश का खजाना खाली करने के के आरोप हैं, तो कांग्रेस के पास सरकार के फ्री योजनाओं के अलावा ईआरसीपी का मुद्दा प्रमुख है। मोटे पर तौर देखा जाए तो विकास के मामले में सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है। यह बात सही है कि पांच साल चली आपसी खींचतान के कारण प्रत्येक विधायक को सीएम पर दबाव बनाकर अपने हिसाब से काम करने का अवसर मिला है। इसके कारण कई विधायक भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गए हैं। कोरोना काल के दौरान जनता को अपने हाल पर छोड़कर होटलों में रहने वाली इस सरकार में पांच साल केवल एक ही चीज चली है, कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच कुर्सी किसके पास रहेगी। हालांकि, साम, दाम, दण्ड, भेद के द्वारा अशोक गहलोत ने पांच साल अपनी सरकार चला ली है। किंतु अब सरकार बनाने की बारी आई है तो गहलोत फिर से सचिन पायलट से सहारा लेने के लिए उन पर डोरे डाल रहे हैं। पायलट का रवैया साफ बता रहा है कि वह किसी भी हालत में अशोक गहलोत सरकार की प्रशंसा नहीं करने वाले हैं। याद कीजिए पिछली बार जब सचिन पायलट अध्यक्ष थे और उनके सीएम बनने की संभावना थी, तभी कांग्रेस पार्टी केवल 99 सीटों पर पहुंच पाई थी, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस बार कहां रहने वाली है, जबकि सरकार ने कोई चमत्कारिक काम भी नहीं किया है।


अब सवाल यह उठता है कि आखिरी अशोक गहलोत किस दम पर सरकार रिपीट कराने का दावा कर रहे हैं? सरकार ने चिरंजीवी योजना, 40 लाख महिलाओं को फ्री मोबाइल, एक करोड़ फूड पैकेट जैसी फ्री योजनाओं के कारण जनता से वोट मांगने का प्लान बनाया है, तो साफ ही पूर्वी राजस्थान की ईस्ट राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट, यानी ईआरसीपी को भी मुद्दा बनाने की योजना बनाई है। यह वही पूर्वी राजस्थान है, जहां से कांग्रेस की सरकार बनी थी। पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लिए ईआरसीपी को जीवनदायिनी बताया जा रहा है, जिसमें जयपुर, अजमेर, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, दौसा, करौली, सवाई माधोपुर, टोंक, कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ शामिली हैं। वर्तमान में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, दौसा, करौली, सवाई माधोपुर की 35 में से 33 सीटें कांग्रेस के पास हैं। सही मायने में इसी क्षेत्र को कांग्रेस सरकार बनने का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। इसके साथ ही यह भी सही है कि इन जिलों में सचिन पायलट के समर्थकों की संख्या काफी अधिक है, जिसके कारण ही पिछले चुनाव में कांग्रेस को बहुमत तक पहुंचने में मदद मिली।


कांग्रेस इसलिए इस क्षेत्र को टारगेट कर रही है। अशोक गहलोत बीते दो साल से ईआरसीपी को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अब कांग्रेस ने ईआरसीपी को लेकर पूर्वी राजस्थान में यात्रा निकालने का कार्यक्रम तय किया है। हालांकि, कुछ समय पहले भी तय हुआ था, लेकिन पायलट समर्थकों द्वारा भारी विरोध के डर से निरस्त कर दिया गया था। अब एक बार फिर से कांग्रेस ने ईआरसीपी को लेकर पूर्वी राजस्थान में यात्रा निकालने की योजना बनाई है। वैसे सरकार के पास यदि काम करने का कोई रिकॉर्ड होता तो उसपर काम करती, उसको मुद्दा बनाती और उसके नाम पर प्रचार किया जाता, इस तरह से किसी नए काम को लेकर प्रचार किया जाना कांग्रेस पार्टी के पास मुद्दा नहीं होने और विकास नहीं करने का सबसे बड़ा सबूत है। सरकार ने अपने आखिरी छह महीनों में मोबाइल बांटे, फूड पैकेट बांटे, बिजली यूनिट फ्री किए, उज्जवला के सिलेंडरों पर छूट दी, नौकरियों के ऐलान किए और सबसे मजेदार बात यह है कि अंतिम दिनों में भी 3 नए जिलों की घोषणा कर अशोक गहलोत ने इतिहास में अपना नाम लिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। समाजों के बोर्ड बनाने में इस बार सरकार ने रिकॉर्ड बनाया तो जिले बनाने में गहलोत ने सभी रिकॉर्ड तोड़ डाले।


हालांकि, पिछली बार घोषणा पत्र में कांग्रेस ने जो वादे किए थे, उनको भुला दिया गया। किसान कर्जमाफी आजतक नहीं हुई। बेरोजगारों भत्ता तो मिला नहीं, ऊपर से 17 सरकारी भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक करके रिकॉर्ड जरूर बना दिया। ईआरसीपी को लेकर पिछले लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने वादा किया था कि इस पर सकारात्मक विचार किया जाएगा, जिसको कांग्रेस ने वादे के रूप में प्रचारित किया है। गहलोत सरकार ने माहौल बनाने के लिए ईआरसीपी के लिए दो बार में बजट दिया, कुछ कर्मचारी भी नियुक्त कर दिए, जबकि हकिकत यह है कि जब तक केंद्र सरकार नहीं चाहेगी, तब तक इसको ना तो शुरू किया जा सकता है और ना ही पूरा किया जा सकता है। इस योजना में कई राज्य सरकारों शामिल हैं, इसलिए राज्य सरकार चाहकर भी इसको पूरा नहीं कर पाएगी। अशोक गहलोत सरकार ने 9 दिसंबर 2022 को 25 करोड़ की लागत से ईआरसीपी निगम का गठन भी कर दिया। इसके तहत 8 कार्यालयों में 115 पद सृजित कर दिए, जहां अधिकारी, कर्मचारी काम कर रहे हैं। इसके साथ ही अशोक गहलोत ने कहा है कि यदि केंद्र सरकार इसको पूरा नहीं करेगी तो राज्य सरकार करेगी। हालांकि, गहलोत की नियत पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि सरकार ने आखिरी साल में इसका प्रचार करना शुरू किया, यदि सरकार की नीयत सही होती तो पहले साल इसको शुरू किया होता। यदि ऐसा होता तो संभवत: अब तक इस परियोजना को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता था। 


अब सवाल यह उठता है कि आखिरी केंद्र सरकार इस योजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा क्यों नहीं देना चाहती है? इस परियोजना की लागत करीब 37 हजार करोड़ से अधिक बताई जा रही है। हालांकि, आपको पता है कि जब योजना बनती है, तब उसकी लागत कितनी होती है और जब वह बना जाती है, तब उसकी लागत कितनी हो जाती है? राजस्थान में रिफाइनरी इस बहुत बड़ा उदाहरण है। रिफाइनरी की लागत शुरू में 43000 करोड़ आंकी गई थी, जो अब 72000 करोड़ हो चुकी है। अब इसी तरह की बात ईआरसीपी को लेकर कही जा रही है। योजना जितने की बनाई गई है, वह समय भी पीछे छूट गया है। इस हिसाब से लागत दोगुनी से अधिक हो जाएगी। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार इसको राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं कर रही है तो केंद्र सरकार का कहना है कि इसी डीपीआर ठीक से नहीं बनी है, जिसके कारण इसको पूरा किया ही नहीं जा सकता है। कांग्रेस का आरोप है कि चंबल नदी का काफी पानी हर साल बेकार चला जाता है, जबकि मध्य प्रदेश सरकार का कहना है कि चंबल से पानी नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि पानी आएगा कहां से? असल बात यह है कि प्रतिवर्ष चंबल का करीब 20 हजार मिलियन क्यूबिक पानी बहकर बंगाल की खाड़ी में गिर जाता है। यदि परियोजना को पूरा किया जाता है तो 2051 तक सभी 13 जिलों में 2.02 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा।


राज्य सरकार का कहना है कि चंबल और उसकी सहायक बनास, मेज, पार्वती, कालीसिंध, कुन्नू नदियों से पानी लिया जाएगा, जो कि हर साल बाढ़ के कारण बह जाता है। ठीक इसी तरह से इस योजना में पांच जिलों के अंदर 53 बांधों तक पानी पहुंचाया जाएगा। ईआरसीपी में 6 बैराज और एक बांध का निर्माण किया जाएगा। इस परियोजना में 13 जिलों को सप्लाई होगी, जिसमें 40 फीसदी आबादी कवर होती है। परियोजना पूरी होने के बाद 2.02 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो पाएगी। आपको याद होगा कुछ समय पहले केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो कुछ लोगों को कह रहे थे कि आप राजेंद्र राठौड़ की सरकार बना दो, ईआरसीपी पूरी कर देंगे, इसका मतलब यह हुआ कि केंद्र सरकार चाहकर ही इस योजना को पूरा नहीं करना चाहती है, गजेंद्र सिंह शेखावत के लिए यह राजनीतिक मुद्दा है। यदि सरकार बनाई तो योजना पूरी होगी, अन्यथा नहीं होगी। इससे एक बात साफ हो जाती है कि योजना तो वाइबल है, लेकिन सियासत के कारण अटका रखा है। जब जल का सबसे बड़ा मंत्री इस तरह से बयान देता है तो सवाल उठते ही हैं। 


अब सवाल यह उठता है कि इसको राष्ट्रीय परियोजना बनाने की मांग क्यों हो रही है? क्या राज्य सरकार केवल 37000 करेाड़ रुपये खर्च नहीं कर सकती? दरअसल, यह पानी का मसला केवल राजस्थान का ही नहीं है, बल्कि इसमें और भी राज्य शामिल हैं, जिसके कारण कई जगह से एनओसी लेनी होगी। मध्य प्रदेश से जल समझौता करना होगा और नदियों को लोड़ने का काम केवल केंद्र सरकार कर सकती है। राष्ट्रीय परियोजन की बात की जाए तो अब तक ऐसी ही 16 राष्ट्रीय परियोजनांए चल रही हैं, जिनको केंद्र सरकार ने ही पूरा किया है। केंद्र सरकार इस परियोजना को लेकर भी सकारात्मक है, लेकिन मध्य प्रदेश जहां पानी देने को तैयार नहीं है, तो राजस्थान में सियासी खींचतान के चलते योजना शुरू नहीं हो पा रही है। राजनीतिक मुद्दा बनाकर इससे वोट लेना तो सब चाहते हैं, लेकिन मन लगाकर इस परियोजना को पूरा कोई दल नहीं करना चाहता। यह मुद्दा पिछले चुनाव में भी उठा था, तब कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव और भाजपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान वादा किया था, किंतु आजतक केवल आरोप—प्रत्यारोप ही चले हैं, किसी ने इसपर काम नहीं किया। इसकी शुुरआत वसुंधरा राजे की पहली सरकार के दौरान की गई थी, लेकिन बाद में सरकार बदलते ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। उसके बाद दो साल पहले अचानक से गहलोत सरकार ने इसको फिर से मु्द्दा बनाया है। 


प्रश्न यह उठता है कि जब राजस्थान महिला अत्याचार, रेप, मर्डर, दलित अत्याचार, मॉब लिंचिंग, किसान आत्महत्याओं में राजस्थान को पांच साल में नंबर एक बनाया जा चुका है, तब क्या इस एक मुद्दे के सहारे कांग्रेस सरकार रिपीट हो सकती है? सरकार ने 2700 करोड़ से अधिक के 40 लाख मोबाइल बांटे हैं, इतने ही रुपयों की फूड पैकेट योजना शुरू की है, इससे भी कहीं अधिक बढ़कर केवल 3 लाख सरकार कर्मचारी परिवारों का वोट पाने के लिए प्रतिवर्ष 25 हजार करोड़ की ओपीसी शुरू कर दी है, तब प्रदेश के साढ़े तीन करोड़ लोगों की योजना को राज्य सरकार पूरा बजट क्यों नहीं दे रही है? यही सवाल केंद्र सरकार से भी है, कि आखिर वादा करने के बाद भी इसको पूरा नहीं किया जा रहा है?


दरअसल, कोई भी सरकार किसी भी परियोजना को तब तक पूरा नहीं करती है, जब तक जनता की तरफ से इसको लेकर जन आंदोलन शुरू नहीं किया जाए। इसके कारण राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया जाता है। पूर्वी राजस्थान के जयपुर सहित 13 जिलों की इस परियोजना के दौरान प्रदेश विधानसभा करीब 100 सीटें आती हैं। 


इस परियोजना के तहत 26 छोटे और बड़े बांधों का निर्माण किया जाएगा। इस बांध से दो लाख हेक्टेयर नए कमांड क्षेत्र और 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई में सुधार आएगा। इस परियोजना के तहत लगभग 1268 किलोमीटर लंबा कैनाल भी बनाया जाएगा। ईआरसीपी योजना के अंतर्गत राज्य का 23.67 प्रतिशत इलाका आएगा। इसके अलावा राज्य के 41.67 फीसदी आबादी को इसका फायदा मिलेगा। ईआरसीपी योजना के लिए 40 हजार करोड़ का बजट तय किया गया है, अगर ये सफल होता है तो राजस्थान के दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए आसानी से पानी मिल सकेगा।


ईआरसीपी परियोजना के पूरे होने से राज्य के 13 जिलों की तस्वीर बदल जाएगी। इन 13 जिलों में करीब 86 विधानसभा सीटें हैं जिसके नाम पर दोनों ही दल सियासी फायदा उठाना चाहते हैं। वर्तमान में देखें तो इन 86 विधानसभा सीटों में कांग्रेस के 50, बीजेपी के पास 22, आरएलडी के 1 और 7 सीटों पर निर्दलीय विधायक हैं। ऐसे में जिस पार्टी के विधायक के रहते हुए इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय स्तर का दिया जाएगा, पूरा श्रेय उसी पार्टी को जाएगा। यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी इस चुनाव में यात्रा कर जनता को यह बताने का प्रयास कर रही है​ कि वह इस परियोजना को लेकर गंभीर है, लेकिन केंद्र सरकार कुछ नहीं कर रही है। इसका फायदा न केवल विधानसभा में होगा, बल्कि लोकसभा में भी होगा। 


इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में पूर्वी राजस्थान से कांग्रेस को बंपर सीटें मिली थीं। जिसके दो बड़े कारण थे। पहला कारण तो सचिन पायलट हैं, जिनकी इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा प्रभाव है। दौसा से सांसद रहे हैं, उनके पिता भी यहां से सांसद रह चुके हैं। इसके साथ ही इस क्षेत्र के गुर्जर, मीणा और जाट समाज में सचिन पायलट का काफी प्रभाव माना जाता है। पिछले चुनाव में इस क्षेत्र के लोगों को उम्मीद थी कि यदि कांग्रेस सरकार बनी तो सचिन पायलट सीएम बनेंगे, लेकिन इस बार इस तरह की कोई उम्मीद नहीं है। दूसरा कारण ईआरसीपी का मुद्दा है, जिसको पूरा करने का वादा किया गया था। राज्य सरकार ने बयानबाजी तो खूब की है, लेकिन इसको लेकर किया कुछ भी नहीं है। आप अंदाजा लगा सकते हैं के इस मुद्दे के कारण कांग्रेस को यहां की 86 में से 50 सीट मिल गईं, जबकि 2013 के चुनाव में कांग्रेस साफ हो गई थी। 


चुनावी रणभेरी बज चुकी है और कांग्रेस ने फ्री योजनाओं के अलावा ईआरसीपी को मुद्दा बनाने का मन बनाया है, तो भाजपा ने चरम पर चल रहे अपराध, पेपर लीक, कर्जमाफी के वादे में फंसे 19400 किसानों की नीलाम हुई जमीनों को मुद्दा बनाया है। देखने वाली बात यह होगी कि किस दल को जनता को आर्शीवाद मिलता है। 

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